रंग-मंच है जिन्दगी, अभिनय करते लोग।
नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।।
विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र।
विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।।
आपाधापी हर जगह, सभी जगह सरपञ्च।।
रंग-मंच के क्षेत्र में, भी है खूब प्रपञ्च।।
रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल।
भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।।
रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज।
मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।।
कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च।
सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।।
नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत।
रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।।
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बुधवार, 27 मार्च 2019
दोहे "अभिनय करते लोग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया! प्रासंगिक !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.3.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3288 ,में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अब अंतरिक्ष तक सर्जिकल स्ट्राइक करने में सक्षम... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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