वासन्ती मौसम में उपवन,
खुल करके मुस्काया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन
को, खुशबू से महकाया है।।
नेह नीर की पावन
सरिता, मेरे मन मॆं बहती है,
बीससाल से पाँच
मार्च की, प्रबल प्रतीक्षा रहती है,
मार्च मास सूनी
बगिया में, खुशियाँ लेकर आया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन
को, खुशबू से महकाया है।।
जैसे मथुरा नगरी चहक
रही है, कान्हा-कृष्ण-मुरारी से,
वैसे ही गुंजित है
मेरा, सदन सहज किलकारी से,
सौम्य-सलौना और
खिलौना, बालक मैंने पाया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन
को, खुशबू से महकाया है।।
बालक होते हैं जिस
घर में, वो लगता गहवारा सा,
दादा-दादी को तब मिलता,
अभिनव एक सहारा सा,
शिवजी ने भी इस
अवसर पर, डमरू खूब बजाया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन
को खुशबू से महकाया है।।
कल के नन्हे पौधे पर,
अब नूतन यौवन आया है,
पथ पर जाने वालों
को, वो देता अपनी छाया है,
जन्मदिवस पर शुभ
आशीषों का, यह गीत बनाया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन
को खुशबू से महकाया है।।
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मंगलवार, 5 मार्च 2019
गीत "पौत्र प्राँजल का 20वाँ जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबालक होते हैं जिस घर में, वो लगता गहवारा सा,
जवाब देंहटाएंदादा-दादी को तब मिलता, अभिनव एक सहारा सा,
शिवजी ने भी इस अवसर पर, डमरू खूब बजाया है।
पौत्र प्रांजल ने आँगन को खुशबू से महकाया है।।
बहुत ही भावपूर्ण और स्नेह से गद्गद् दादा जी के अप्रितम उदगार !! भोले बाबा का डमरू वाह !!!!!!