भूमिका उदात्त भावनाओं की अभिव्यक्ति "कृष्णायन संजीवनी" आज अचानक आभासी दुनिया के मेरे मित्र कवि अशोक कुमार मिश्र जी मेरे निवासस्थान पर पधारे। उनसे मिलकर ऐसा लगा कि जैसे हम वर्षों से एक दूसरे को जानते हैं। यद्यपि उनके आने का प्रयोजन नैमित्तिक ही था। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का भावरूपान्तरण दोहा छन्द में किया है। जिसकी पाण्डुलिपि को आद्यन्त तक बाँच कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि स्वतन्त्र रूप से काव्य सृजन करना जितना सरल है उतना ही किसी कृति की विषय वस्तु का रूपान्तर करना बहुत कठिन और दुष्कर कार्य है। किन्तु कवि अशोक कुमार मिश्र जी ने इसे सम्भव कर दिखाया है। उदाहरण के लिए- श्लोक - 2.22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यानि संयाति नवानि
देही।। श्लोक
का भाव रूपान्तरण देखिए- "जीर्णवस्त्र जिमि त्याग नर,
पहने नये नवीन। वैसे ही सुन जीव भी, त्यागे
देह मलीन।। अन्य-अन्य तन प्राप्त कर, जाता
नूतन देह। अर्जुन ऐसा जान लो, करो
नहीं सन्देह।।" इसी अध्याय के
एक अन्य श्लोक के भाव रूपान्तर का भी अवलोकन कर लीजिए- श्लोक 2.47 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47। -- "रखो कर्म अधिकार तुम,
करो न फल का ध्यान। कर्मों के फल हेतु का, करना मत
गुणगान।। कर्महीन रहना नहीं, करो न
ऐसा भान। अर्जुन ऐसे कर्म में, तेरा है
कल्यान।।"
विद्वान दोहाकार अशोक कुमार मिश्र ने अध्याय 10 के
श्लोकों का बहुत ही भावपूर्ण रूपान्तरण सशक्तरूप से किया है। देखें- उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥२७॥ -- "अश्वों में उच्चैश्रवा,
अमिय संग उत्पन्न। अर्जुन ऐसा मान ले, मैं ही
हूँ सम्पन्न।। सभी गजों में श्रेष्ठ मैं, ऐरावत
ही मान। नर उत्तम मैं ही सुनो, राजा
बहुत महान।।" इसी क्रम में
अध्याय 11 के निम्न श्लोक का भी अवलोकन कर लीजिए- अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रम पश्यामि त्वां सर्वतोअनंतरूपम। नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।16। -- "जग के स्वामी आपकी, बहुत भुजा मुख नैन। उदर बहुत सब ओर से, देख हुआ
बेचैन।। रूप दिखे प्रभु आपके, जिनका
आदि न अन्त। सकलरूप में मध्य भी, दिखे
नहीं भगवन्त।।" यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्। यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5। -- "यज्ञ दान तप कर्म का,
कभी करो मत त्याग। यही कर्म नित कर्म हैं, रखो सदा
अनुराग।। यज्ञ दान तप कर्म को, नर करते
जो जान। शुचितामय जीवन करें, ऐसा लो संज्ञान।।" साहित्य की दो
विधाएँ हैं गद्य और पद्य, जो साहित्यकार की देन होती हैं
और वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती
हैं।
जहाँ कथाकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ प्रेरणा
देने का प्रयास किया है। वहीं पद्यकारों ने भी अपने काव्य के माध्यम से समाज को
दिशा देने का प्रयास किया है। "कृष्णायन संजीवनी" भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो दोहाकार अशोक
कुमार मिश्र की कलम से निकला है। इस दोहा संग्रह के शीर्षक की सार्थकता इसी में
है कि यह श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का भाव रूपान्तर दोहा छन्द में है।
इस प्रकार मैं यह देखता हूँ कि दोहाकार अशोक कुमार मिश्र जी ने भाषिक
सौन्दर्य के अतिरिक्त दोहा छन्द की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन
किया है,
वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक अशोक कुमार मिश्र जी के दोहों से अवश्य
लाभान्वित होंगे और उनकी "कृष्णायन संजीवनी" दोहा कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगी। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ- समीक्षक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308 मोबाइल-7906360576 Website. http://uchcharan.blogspot.com/ E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शुक्रवार, 3 जून 2022
भूमिका, "कृष्णायन संजीवनी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति।
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