मुझे आज अपनी मुरलिया बना तो तू एक बार होठों से मुझको लगा तो संगीत को छेड़ दूँगी मैं दिलवर तू इक बार मुझको उठाकर बजा तो सुनाऊँगी मैं मेघ मल्हार तुझको सुराखों को तू कायदे से दबा तो मैं कोयल सी चहकूँगी तेरे चमन में तू वीरान गुलशन सजाकर दिखा तो मैं मोहन की प्यारी हूँ मन मोह लूँगी निराशा को तू अपने मन से भगा तो यह “रूप” और रंग तेरे लिए है सुरों की तू इक बार महफिल सजा तो |
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गुरुवार, 16 जून 2022
ग़ज़ल "मुरलिया बना तो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भक्तिभाव से ओतप्रोत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंमोहन की मुरलिया मोह लेती सबका मन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 17 जून 2022 को 'कहना चाहती हूँ कि मुझे जीवन ने खुश होना नहीं सिखाया' (चर्चा अंक 4464) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर आकर्षक ग़ज़ल लय बद्ध तालमेल।
जवाब देंहटाएं