जिसमें हित होता निहित, वो होता साहित्य। जीवन देने के लिए, उगता है आदित्य।१। पूरब से होता शुरू, नूतन जीवन सत्र। दिनचर्चा के भेजता, सूरज लिखकर पत्र।२। दुनिया में सबसे बड़े, मात-पिता, आचार्य। सबको जीवन के वही, सिखलाते हैं कार्य।३। आ जाते हैं जब कभी, पीड़ा के आयाम। अधरों पर आता तभी, परमपिता का नाम।४। चमत्कार से के फेर में, काव्य हुआ है क्ल्ष्टि। श्लिष्ट भाव के दोहरे, होते नहीं विशिष्ट।५। डोरी जब तक थी रखी, मैंने अपने हाथ। कनकइया ने था दिया, तब तक मेरा साथ।६। मंजिल पाने के लिए, रखना मन में चाह। ठोकर खा कर ही सदा, मिलती सीधी राह।७। जिसके सिर पर ताज हो, होता उसका नाम। जोड़-तोड़ से चल रहे, दुनिया में सब काम।८। खाते-पीते खूब है, मगर न करते काम। अफसर-जनसेवक हुए, अब तो अक्षरधाम।९। श्रम करके भी श्रमिक तो, रहा मजे से दूर। खाता नहीं हराम का, दुनिया में मजदूर।१०। टंकण करने में लगा, काम जरूरी छोड़। पागलपन में कर रहा, लिखने की अब होड़।११। छोड़ो मेरी बात को, कहता है संसार। होता मतलब के लिए, पागलपन स्वीकार।१२। ठोकर खा कर ही मिले, जग में सीधी राह। लेकिन होनी चाहिए, मन में सच्ची चाह।१३। कभी जुदाई है यहाँ, कभी यहाँ पर मेल। है संयोग-वियोग का, प्यार अनोखा खेल।१४। टोका-टाकी है बुरी, नयी पौध के साथ। रखना शुभ आशीष का, सबके सिर पर हाथ।१५। न्यायालय में भी बढ़ा, पागलपन का रोग। अपने स्वारथ के लिए, पागल बनते लोग।१६। दुनिया में सब तरह के, मिल जायेंगे लोग। लेकिन सज्जन तब मिलें, जब होता संयोग।१७। जीवन के तो अंग हैं, ये संयोग-वियोग। जैसा जिसने था किया, वही रहा है भोग।१८। होते रहते हैं सदा, मौसम में बदलाव। सुख-दुख दोनों में रहो, आप सदा समभाव।१९। लेना अपने फैसले, सोच–समझ कर आप। एक जरा सी चूक से, छा जाता सन्ताप।२०। सर्व धर्म समभाव का, लिख देना मजमून। बार-बार मिलती नहीं, मानव की ये जून।२१। जान-बूझ कर मत करो, गलती बारम्बार। शिक्षा लेकर भूल से, करना भूल सुधार।२२। देखे जितने ख्वाब थे, सभी हो गये भंग। सब कुछ मँहगा हो गया, बिगड़ा जीवन ढंग।२३। सरकारी रुख देख कर, मन में हुआ मलाल। मँहगाई ने कर दिया, जनजीवन बदहाल।२४। दशकों गुजरे देश में, आया नहीं सुराज। जिससे खुशहाली बढ़े, नहीं मिला वो राज।२५। कुटिल सुनामी आ गयी, बहा ले गयी चैन। सुख के दिवस चले गये, अब है काली रैन।२६। गंगा निर्मल हो भले, बहे भले जल-धार। मँहगाई को देखकर, आहत है परिवार।२७। दुनिया में सब तरह के, मिल जायेंगे लोग। लेकिन सज्जन तब मिलें, जब होता संयोग।२८। -- जब बालक की पीठ पर, लदा हुआ हो भार। पढ़ने के सपने कहाँ, फिर होंगे साकार।२९। -- जिनका केवल रह गया, रिश्वतखोरी काम। वो जनसेवक कर रहे, सत्ता को बदनाम।३०। -- जीवन में कैसे भला, सरसे सुख की भोर। थोड़े दोहाकार हैं, ज्यादा दोहाखोर।३१। -- श्रमिकों से जिनका नहीं, कोई भी सम्बन्ध। श्रमिक दिवस पर लिख रहे, वो ही शोधप्रबन्ध।३२। -- |
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गुरुवार, 9 जून 2022
दोहा बत्तीसी "उगता है आदित्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बेहतरीन दोहे शास्त्री जी !!
जवाब देंहटाएंकमाल के दोहे
जवाब देंहटाएंसादर
बढ़िया दोहे जी ।
जवाब देंहटाएंविसंगतियों पर प्रहार करते सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएं