जीत में है बदलना मिली हार को प्यार से झेलना वक्त की
मार को भूलना मत कभी भी मददगार
को दिल से खैरात दे देना हकदार
को -- हौसला दिल में रखना हमेशा
जवां जंग लगने न देना है हथियार
को -- अड़चनें आयें जब भी कभी राह
में दिल से तजना नहीं नगमगी प्यार
को -- जिन्दगी में कभी सुख हैं दुख
हैं कभी फूल जैसा समझना सदा खार
को -- मसले सारे यकीनन सुलझ
जायेंगे बन्द करना नहीं आस के द्वार
को -- एक शम्मा जलाकर तो देखो
कभी रौशनी मात दे देगी अँधियार
को -- एक और नेक बनकर है रहना
हमें घर में तामीर करना ना दीवार
को -- जो है पीता जहर वो महादेव
है थामता वो ही गंगा की जलधार
को -- जो भी कोशिश में कोताही
करता नहीं वो ही हाँ में बदलना है इनकार
को -- साज को जो बजाता है तरतीब
से वो नहीं छेड़ता है गलत तार
को -- इक इशारे पे बरबाद हो
जाओगे मत चुनौती कभी देना दरबार
को -- दिल में जो हो उसे खुलके कह
दीजिए क्यों दबाते दिलों में
हो अबसार को -- बच नहीं पायेगा कोई कानून
से न्याय देगा सजा जब गुनहगार
को -- चाल काबू में रख ले अरे
आदमी ब्रेक तो दीजिए तेज रफ्तार
को -- चाल चलते रहो वक्त के साथ
में सादगी से करो रोज सिंगार
को -- हुस्न पर इतना अभिमान मत
कीजिए "रूप" देता हवा
जुल्फ-रुखसार को -- |
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शनिवार, 4 जून 2022
सत्रहशेरी ग़ज़ल "प्यार से झेलना वक्त की मार को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन शेरों से सजी गजल
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंमसले सारे यकीनन सुलझ जायेंगे
जवाब देंहटाएंबन्द करना नहीं आस के द्वार को ।
बहुत सुंदर रचना आदरणीय ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (5-6-22) को "भक्ति को ना बदनाम करें"'(चर्चा अंक- 4452) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएं