दोहों में ही निहित है, जीवन का भावार्थ। गरमी में अच्छे लगें, शीतल पेय पदार्थ।। ज्यादा मीठे माल से, हो जाता मधुमेह। कभी-कभी तो चाटिए, कुछ तीखा अवलेह।। हमने दुनिया को दिया, कविताओं का ढंग। किन्तु विदेशों का चढ़ा, आज हमीं पर रंग।। राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग। जनता दुष्परिणाम को, आज रही है भोग।। वर्तमान है लिख रहा, अब अपना इतिहास। आम आज भी आम है, खास आज भी खास।। बढ़ जाता है हौसला, जब हो जाती जीत। मन में अगर उमंग हो, बज उठता संगीत। अगर इरादे नेक हों, होती नहीं थकान। सादा भोजन भी लगे, मानो हो पकवान।। जिनके मिलने से मिले, मन को खुशी अपार। ऐसे सज्जनवृन्द तो, मिलने अब दुश्वार।। लोगों ने देखा जहाँ, बेलन-तवा-परात। अपनी चादर को बिछा, वहीं गुजारी रात।। लोगों को जब शहद की, मिल जाती है गन्ध। बिना किसी अनुबन्ध के, हो जाते सम्बन्ध।। अच्छे कामों में सदा, आते हैं अवरोध। चूहें-छिपकलियाँ करें, रवि का बहुत विरोध।। |
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रविवार, 5 जून 2022
दोहे "खास आज भी खास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे
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