एकल
कवितापाठ का, अपना ही आनन्द।
रोज़ सृजन को कीजिए, करके कमरा बन्द।१। -- कर खुद ही टिप्पणी, रोज निभाना धर्म। तब आयेगा समझ में, कविताओँ का मर्म।२। -- टिप्पणियों के ढेर से, बन जाता आधार। अपनी रचना बाँचकर, मिलते हैं उपहार।३। -- आम आदमी पिस रहा, मजे लूटता खास। मँहगाई की मार से, मेला हुआ उदास।४। -- प्रियतम भूला आपको, आप कर रहे याद। पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद।५। -- कम शब्दों के मेल से, दोहा बनता खास। सरस्वती जी का रहे, सबके उर में वास।६। -- ठगती सबको लालसा, मानव हों या देव। लालच बुरी बलाय है, इससे बचो सदैव।७। -- एक-एक कर सभी की, खोल रहे जो पोल। सही राह बतला रहे, गुणीजनों के बोल।८। -- देश खोखला कर दिया, जीना किया हराम। आम आदमी हो रहे, फोकट में बदनाम।९। -- फिर से पैदा हो गये, बाबर-औरंगजेब। जिनमें उनकी ही तरह, भरे हुए हैं ऐब।१०। -- वाणी में ही निहित हैं, सभी तरह के बोल लेकिन कड़वे बोल से, विष का बनता घोल।११। -- सम्बन्धों की आड़ में, वासनाओं का खेल। करके झूठी प्रशंसा, करते तन का मेल।१२। -- आम आदमी पिस रहा, खास हो रहे मस्त। जाली नोटों ने करी, यहाँ व्यवस्था ध्वस्त।१३। -- सामाजिक परिवेश में, आयी है अब मोच। कुछ लोगों की हो गई, कितनी गन्दी सोच।१४। -- पलकों पर ठहरी हुई. इन्तज़ार की ओस। बिना पिये जो हृदय को, कर देती मदहोश।१५। |
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मंगलवार, 19 सितंबर 2017
दोहे "एकल कवितापाठ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हा हा बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंसमाज को आइना दिखाते हास्य-व्यंग और गंभीरता से परिपूर्ण उत्कृष्ट दोहे।
जवाब देंहटाएंआपके चिंतन की बारीकियां की सुन्दर झलक है इन दोहों में।
बधाई आदरणीय शास्त्री जी।
वाह ... क्या बात है ... एकला ही चलना होता है जीवन में ...
जवाब देंहटाएंसभी दोहे सुन्दर लाजवाब ...
@आम आदमी पिस रहा, खास हो रहे मस्त........अप्रवर्तनीय सच्चाई
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