विजय
सत्य की हो तभी, झूठ जाय जब हार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।।
नकली
तीर-कमान पर, लोग कर रहे गर्व।
सिमटा
पुतला दहन तक, विजयादशमी पर्व।।
चाल-चलन
का रूप तो, बहुत हुआ विकराल।
अपने
बिल में साँप अब, चलते टेढ़ी चाल।।
रामचन्द्र
के देश में, मन का रावण मार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।१।
मक्कारों
की आ गयी, आज देश में बाढ़।
इसीलिए
सम्बन्ध भी, बनते नहीं प्रगाढ़।।
कदम-कदम
पर चल रहा, धोखा और फरेब।
बन
बैठे हैं आज तो, बेटे औरंगजेब।।
छल-फरेब
की बह रही, आज देश में धार।।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।२।
कूटनीति
में आ गया, चलकर आज प्रपंच।
अपनी
रोटी सेंकते, दुनिया के सरपंच।।
नभ
में जब बिन पंख ही, उड़ने लगे विमान।
महिमा
को तब तन्त्र की, कैसे करूँ बखान।।
भ्रष्ट
आचरण से नहीं, होगी जय-जयकार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।३।
रोज-रोज
ही तेल का, चढ़ता है बाजार।
महँगाई
ने कर दिया, जन-जीवन लाचार।।
वर्तमान
सरकार में, जनता है नाशाद।
अब
पिछली सरकार को, लोग कर रहे याद।।
सच्चाई
का अब यहाँ, रहा नहीं व्यापार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।४।
भाषण
में ही मिल गया, सबको मोहनभोग।
लालच
में ही हो गये, भगवाधारी लोग।।
शोणित
अब शीतल हुआ, आता नहीं उबाल।
खास-खास
धनवान हैं, आम हुए कंगाल।।
खाकर
चैन-सुकून भी, लेते नहीं डकार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।५।
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शुक्रवार, 29 सितंबर 2017
दोहागीत "होगा क्या उद्धार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर सटीक।
जवाब देंहटाएंगज़ब....वाह्ह्ह...👌👌
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