उलटफेर परिणाम में, महज नहीं संयोग।
तानाशाही को सहन, कब तक करते लोग।।
जनता की तो नाक में, पड़ती नहीं नकेल।
जनमत पर ही है टिका, लोकतन्त्र का खेल।।
जनसेवक जनतन्त्र में, ओटन लगे कपास।
पूरी होगी किस तरह, तब जनता की आस।।
जनता का जनतन्त्र में, जिसको मिलता साथ।
सत्ता की चाबी रहे, उस दल के ही हाथ।।
लोगों को लगने लगा, फिर से अच्छा हाथ।
छोड़ दिया है कमल का, जनता ने अब साथ।।
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मंगलवार, 11 दिसंबर 2018
दोहे "महज नहीं संयोग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-12-2018) को "महज नहीं संयोग" (चर्चा अंक-3183)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत ही सुन्दर दोहे 👌👌
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