पलभर में ही हो गया, गया साल इतिहास।
नये साल से बहुत कुछ, लोग लगाते आस।।
मंगल से उन्वान है, मंगलमय नववर्ष।
नये साल का हो गया, मंगल से उत्कर्ष।।
होंगे नूतन वर्ष में, देशों से अनुबन्ध।
अब विकास के क्षेत्र में, पनपेंगे सम्बन्ध।।
भारत के सब नागरिक, माँगें सबकी खैर।
नहीं चाहते किसी से, भारतवाले बैर।
नये साल में कुम्भ का, आया पर्व विशेष।
करके जल का आचमन, छोड़ दीजिए द्वेष।।
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सोमवार, 31 दिसंबर 2018
दोहे "मंगलमय नववर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 30 दिसंबर 2018
दोहे "जाने वाला साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बाहरवालों की कभी, मत करना मनुहार।
सुख-दुख दोनों में करें, घरवाले ही प्यार।।
देश और परदेश हो, या अपनी सरकार।
सभी जगह कर्तव्य से, मिलते हैं अधिकार।।
जैसे मन में आपके, होंगे भरे विचार।
मिल जायेगा आपको, वैसा ही संसार।।
दुनिया में धन-मान की, सबको है दरकार।
सब अपने गुण-ज्ञान का, लगा रहे दरबार।।
सत्ता-शासन के लिए, होती चीख-पुकार।
चारों तरफ मचा हुआ, अब तो हाहाकार।।
मिले सभी को सम्पदा, रहें सभी खुशहाल।
सन्देशों को बाँटता, जाने वाला साल।।
करता है भगवान से, विनती दोहाकार।
नेताओं का देश में, हो अच्छा किरदार।।
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शनिवार, 29 दिसंबर 2018
अकविता "नये साल की दस्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मौसम का पहला कुहरा
आने में
नया साल
लेकिन
आज पहली बार
कुहरे ने दस्तक दे दी
और बिगाड़ दिये
मौसम के हाल
यही तो है
कुदरत का कमाल
जिसके कारण
जन-जीवन
हो गया बदहाल
अनायास ही बदन में
बढ़ गयी ठिठुरन
अंग-अंग में
होने लगी कम्पन
बच्चों और बूढ़ों के
दाँत बजने लगे
घरों और चौराहों में
अलाव जलने लगे
कुहरे का यह रूप
गरीबों को तो
कभी नहीं भाया
और
पतले से स्वाटर में
काँप रही थी
हॉकर की काया
इसलिए वह
समाचार पत्र भी
देर से लाया
पहले पन्ने पर
क्या पहाड़, क्या
मैदान
सभी जगह
आवाजाही थम गयी
तीस साल बाद
कश्मीर की
डलझील जम गयी
उत्तराखण्ड के औली में
सड़क पर बिछी
बर्फ की सफेद चादर
कुदरत की सौगात से
वाहनों की गति
हो गयी मन्थर
सरदी के साथ
नया साल
दे रहा है दस्तक
भाषणों में वायदों की
लगी रहेगी झड़ी
आने वाले
चुनावों तक...
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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
दोहे "शुभ हो नूतन साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मक्कारों की थी लगी, जगह-जगह चौपाल।।
पानी कैसा भी रहे, गलती इनकी दाल।
आज राम के देश में, हैं सब जगह दलाल।।
रहते थे जिस ताल
में, करते वहाँ बबाल।
घड़ियालों ने कर दिये,
सारे मैले ताल।।
खिला मुफ्त के माल
को, खास रहे हैं पाल।
इसीलिए तालाब में,
छिपे पड़े घड़ियाल।।
अब तक भी बाजार
के, ठीक नहीं है हाल।
आवश्यक सामान पर,
महँगाई विकराल।।
कुछ घण्टे कुछ
दिवस में, बीत जायगा साल।
आशा है नववर्ष
में, सुधरेंगे फिर हाल।।
आशंकाएँ हैं बहुत,
मन में बहुत सवाल।
करते हैं यह
कामना, शुभ हो नूतन साल।।
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गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
दोहे "अपने वीर जवान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुलदस्ते में हैं सजे, सुन्दर-सुन्दर फूल।
सुमनों सा जीवन जियें, बैर-भाव को भूल।१।
शस्य-श्यामला है धरा, जीवन का आधार।
पेड़ लगा कर हम करें, धरती का शृंगार।२।
जनमानस पर कर रहे, कोटि-कोटि अहसान।
सबका भरते पेट हैं, ये श्रमवीर किसान।३।
मातृभूमि पर हो रहे, जो सैनिक बलिदान।
माँ के सच्चे पूत हैं, अपने वीर जवान।४।
अभिनन्दन-वन्दन करें, आओ मन से आज।
आज किसान-जवान से, जीवित सकल समाज।५।
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बुधवार, 26 दिसंबर 2018
"अगर बुरा लगे तो क्षमा करना’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सोमवार, 24 दिसंबर 2018
दोहे "परमपिता का दूत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रोज-रोज आता नहीं, क्रिसमस का त्यौहार।
खुश हो करके बाँटिए, लोगों को उपहार।।
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दया-धर्म का जगत में, जीवित रहे निवेश।
यीसू सूली पर चढ़ा, देने यह सन्देश।।
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झंझावातों में रहा, जो जीवन परियन्त।
माँ मरियम की कोख से, जन्मा था गुणवन्त।।
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सदा अभावों में पला, लेकिन रहा सपूत।
एक पन्थ कहता उसे, परमपिता का दूत।।
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मान और अपमान से, जो भी हुआ विरक्त।
दुनिया उसकी ओर ही, हो जाती अनुरक्त।।
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परमपिता के नाम की, महिमा बड़ी अपार।
दीन-दुखी का ईश ही, करता बेड़ा पार।।
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जीवन में मंगल करें, सन्तों के उपदेश।
सर्व धर्म समभाव का, बना रहे परिवेश।।
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रविवार, 23 दिसंबर 2018
ग़ज़ल "सिसक रहे शहनाई में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई, सिसक
रहे शहनाई में
भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अमराई में
फटा
हुआ दामन दर्जी को, सिलना नहीं अभी आया
सारा जीवन निकल गया है, कपड़ों की कतराई में
रत्नाकर
में जब भी होता, खारे पानी का मन्थन
मच जाती है उथल-पुथल सी, सागर की गहराई में
केशर
की क्यारी को किसने, वीराना कर डाला है
महाबली बलिदान हो गये, बारूदों की खाई में
मन के
दर्पण में लोगों ने, चित्र-चरित्र नहीं देखा
'रूप' सलोना देख रहे सब, धुँधली सी परछाई में |
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