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करिये नियम-विधान से, नौ दिन तक उपवास।
जगदम्बा माँ आपकी, पूर्ण करेंगी आस।।
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शुद्ध आचरण में रहे, उज्जवल चित्र-चरित्र।
प्रतिदिन तन के साथ में, मन को करो पवित्र।।
शाकाहारी मनुज ही, पूजा के हैं पात्र।
खान-पान में शुद्धता, सिखलाते नवरात्र।।
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माता के नवरात्र हों, या हो कोई पर्व।
अपने-अपने पर्व पर, होता सबको गर्व।।
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त्यौहारों की शृंखला, का बन गया सुयोग।
मस्ती में उल्लास में, झूम रहे हैं लोग।।
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मत-मजहब का भूल से, मत करना उपहास।
होता इनके मूल में, छिपा हुआ इतिहास।।
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त्यौहारों के नाम पर, लोक-दिखावा मात्र।
पाश्चात्य परिवेश में, गुम हो गये सुपात्र।।
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करते पाठन-पठन को, विद्यालय में छात्र।।
सफल वही होते सदा, जो होते हैं पात्र।।
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सोमवार, 30 सितंबर 2019
दोहे "नौ दिन तक उपवास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 29 सितंबर 2019
दोहे "रक्खो व्रत-उपवास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र।
लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।।
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सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप।
निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।।
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सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान।
माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।।
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अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास।
करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।।
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शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र।
ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।।
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सारे सपनों को करें, माता जी साकार।
कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।।
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ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल।
वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।।
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ग़ज़ल "30 सितम्बर जन्म दिन मेरी श्रीमती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जन्मदिन पर शब्द नूतन गढ़ रहा हूँ
मैं अभी तक आपको ही पढ़ रहा हूँ
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जिन्दगी में हैं बहारें आपसे ही
आपके कारण समय से लड़ रहा हूँ
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नाखुदा की आप ही पतवार हो
आपके कारण अगाड़ी बढ़ रहा हूँ
नित नये अध्याय अब भी जोड़ता हूँ
कामनाओं में नगीने जड़ रहा हूँ
साथ मत तुम छोड़ देना रास्ते में
आप हो तो सीढ़ीयों को चढ़ रहा हूँ
दीप बनकर भारती के थाल का
रोज हरसिंगार बनकर झड़ रहा हूँ
गीत को सुर-ताल देने के लिए
‘रूप’ की ढोलक पुरानी मढ़ रहा हूँ
--
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शनिवार, 28 सितंबर 2019
दोहे "भारत देश महान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तोड़े प्रोटोकोल
के, सारे नियम-विधान।
मोदी जी को ट्रम्प
ने, दिया देश में मान।।
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बोला जग में शान से,
जब भारत का लाल।
विश्वमञ्च पर पाक
को, भारी हुआ मलाल।।
गीदड़भभकी दे रहा,
कायर पाकिसतान।
खुले आम उसने कहा,
भारत देश महान।।
--
मर्यादा का है
नहीं, रक्खा जिसने ध्यान।
खौफ और आतंक का,
उसने दिया बयान।।
--
मँडरारता है देखता,
अपने सिर पर काल।
मिटता देख वजूद
को, करने लगा बबाल।।
चन्द दिनों का पाक
है, दुनिया में महमान।
खण्ड-खण्ड हो जायगा,
पापी पाकिसतान।।
अमरीका से है मिली,
जिसको खूब लताड़।
चमन आज नापाक का, वो
खुद रहा उजाड़।।
--
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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019
गीत "नाज़ुक कलाई मोड़ ना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब पढ़ाई और लिखाई छोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
काम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
गुज़र करने के लिए, अवरुद्ध हैं सब रास्ते,
इस लिए मेहनत से नाता जोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
समय कटता है हमारा पत्थरों के साथ में,
वार करने को जिगर पर हथौड़ा है हाथ में.
देखकर नाज़ुक कलाई मोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
कोई रिक्शा खींचता है, कोई बोझा ढो रहा,
कोई पढ़-लिखकर यहाँ पर भाग्य को है रो रहा,
आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
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गुरुवार, 26 सितंबर 2019
ग़ज़ल "ईमान आज तो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
खुद को खुदा समझ रहा, इंसान आज तो
फिरकों में है सिमट गया. जहान आज तो
कैसे सुधार हो भला, अपने समाज का
कौड़ी के मोल बिक रहा, ईमान आज तो
भरकर लिबास आ गये, शेरों का भेड़िए
सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो
जिसको नहीं है इल्म, वो
इलहाम बाँटता
उड़ता बग़ैर पंख के, नादान
आज तो
बस्ती में खूब हो गयी, कौओं
की मौज़ है
चिड़िया का घोंसला हुआ, सुनसान आज तो
ज़न्नत के ख़्वाब को दिखा
इलहाम बेचते
चलने लगी अधर्म की, दुकान आज
तो
सन्तों को सुरक्षा की
ज़रूरत है किसलिए
बौना हुआ समाज का, विधान आज
तो
मिलते हैं सभी ऐश के सामान
जेल में
दुष्टो को मिल गये यहाँ, भगवान आज तो
घर में खुदा के हो रहे, हैवानियत के जश्न
मुश्किल हुई है ‘रूप’ की पहचान आज तो
--
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दोहे "मिली डाँट-फटकार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
शासक तब नापाक
का, माँग रहा था भीख।।
--
लिए कटोरा हाथ
में, करता पाक गुहार।
मगर ट्रम्प सुनता
नहीं, मक्कारी मनुहार।।
--
जान गया संसार जब,
खोटी उसकी सोच।
सदमें में इमरान
अब, बाल रहा है नोच।।
--
विश्वमंच पर पाक
की, हुई करारी हार।
दिवालिए को विश्व
में, देगा कौन उधार।।
--
उल्लू देख प्रकाश को, आँख रहा है मूँद।
छल की गागर में
नहीं, बची नेह की बूँद।।
--
उद्गम अब आतंक का,
जान गया संसार।
भिक्षा में मक्कार
को, मिली डाँट-फटकार।।
--
देख लिया है पाक
की, जनता ने अन्दाज।
घर जाकर इमरान का,
छिन जायेगा ताज।।
--
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मंगलवार, 24 सितंबर 2019
दोहे "रोटी भरती पेट" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
फूली रोटी देखकर, मन होता अनुरक्त।
हँसी-खुशी से काट लो, जैसा भी हो वक्त।१।
--
फूली-फूली रोटियाँ, सजनी रही बनाय।
बाट जोहती है सदा, कब साजन घर आय।२।
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घर के खाने में भरा, घरवाली का प्यार।
सजनी खाने के लिए, करती है मनुहार।३।
--
फूली-फूली रोटियाँ, मन को करें विभोर।
इनको खाने देश में, आते रोटीखोर।४।
--
नगर-गाँव में बढ़ रहे, अब तो खूब दलाल।
रोटीखोरों ने किया, वतन आज कंगाल।५।
--
रोटी का अस्तित्व है, जीवन में अनमोल।
दुनिया में सबसे बड़ा, रोटी का भूगोल।६।
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रोटी सबका लक्ष्य है, रोटी है तकदीर।
रोटी के बिन जगत में, चलता नहीं शरीर।७।
--
जीवन जीने के लिए, रोटी है आधार।
अगर न होती रोटियाँ, मिट जाता संसार।८।
--
हो रोटी जब पेट में, भाते तब उपदेश।
रोजी-रोटी के लिए, जाते लोग विदेश।९।
--
तब रोटी अच्छी लगे, जब लगती है भूख।
कुनबे और पड़ोस में, अच्छे रखो रसूख।१०।
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बाहर खाने में नहीं, आता कोई स्वाद।
होटल में जाकर सदा, होता धन बरबाद।११।
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दौलत के बाजार में, बिकते रोज रसूख।
रोटी की कम भूख है, धन की ज्यादा भूख।१२।
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खाकर माल हराम का, करना मत आखेट।
श्रम से अर्जित रोटियाँ, भरती सबका पेट।१३।
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