अँगरेजी भी है लचर,
हिन्दी भी कमजोर।।
अँगरेजी का हो रहा,
भारत में परित्राण।
नौकरशाहों के चले. निज
भाषा पर बाण।।
शब्दों का अम्बार है, लेकिन
है उलझाव।
आते मस्तक में नहीं,
अब तो नूतन भाव।।
लिखता कविता-दोहरे,
रचता रहता गीत।
चौथेपन में कर रहा,
अपना समय व्यतीत।।
लोगों ने अब कर दिये, नंगे
सभी पहाड़।
देवभूमि के चमन में, दिखने
लगा उजाड़।।
पर्वत का वातावरण, अब
तो हुआ खराब।
लोग धड़ल्ले से यहाँ, पीने लगे शराब।।
अब भाषा के नाम पर, होने
लगा मखौल।
शोर-शराबे से हुआ,
दूषित अब माहौल।।
|
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2019
दोहे हिन्दीदिवस "दिखने लगा उजाड़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शब्दों का अम्बार है, लेकिन है उलझाव।
जवाब देंहटाएंआते मस्तक में नहीं, अब तो नूतन भाव।। निश्चित ही आपने बहुत खूब लिखा शास्त्री जी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत अच्छी प्रेरक सामयिक रचना।
जवाब देंहटाएं