मेरी माता जी रहीं, जब तक मेरे साथ। रहता था मेरे सदा, सिर पर उनका हाथ।१। माता ने सिखला दिये, बहुओं को सब ढंग। सीख गयीं बहुएँ सभी, त्यौहारों के रंग।२। -- करवा पूजन की कथा, जब भी आती याद। पति की लम्बी उमर की, वो करती फरियाद।३। -- जन्म-ज़िन्दग़ी भर रहे, सबका अटल सुहाग। बेटे-बहुओं में रहे, प्रीत और अनुराग।४। -- चन्दा-करवा का रहा, युगों-युगों से साथ। नारी के सौभाग्य पर, चन्दा का है हाथ।५। -- सजना का उसके रहे, सुन्दर-स्वस्थ शरीर। करती सजनी कामना, लिए कलश में नीर।६। -- |
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गुरुवार, 5 नवंबर 2020
दोहे "करवा पूजन की कथा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 06-11-2020) को "अंत:करण का आयतन संक्षिप्त है " (चर्चा अंक- 3877 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
बिना बुजुर्गों के घर, घर नहीं होता !
जवाब देंहटाएंवन्दन... उम्दा सार्थक भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ पर आपके इन नायाब दोहों के लिए साधुवाद
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत ही सुंदर सृजन।
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