आँसू और पसीने में होती है बहुत रवानी। दोनों में ही बहता रहता खारा-खारा पानी।। दुख आता है तो रोने लगते हैं नयन सलोने, सुख में भी गीले हो जाते हैं आँखों के कोने, हाव-भाव से पहचानी जाती है छिपी कहानी। दोनों में ही बहता रहता खारा-खारा पानी।। मोती सा तन पर जब श्रम का स्वेद दिखाई देता, खारा पानी तब मेहनत की स्वयं गवाही देता, सारा भेद खोल देती है पल-भर में पेशानी। दोंनो में ही बहता रहता खारा-खारा पानी।। ज्वार सिन्धु में आने भी शान्त नही रहता है, समझाने पर नेत्र अश्रु का भार नहीं सहता है, मुखड़े पर छाई रहती आँसू की एक निशानी। दोनों में ही बहता रहता खारा-खारा पानी।। |
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गुरुवार, 5 मई 2022
गीत "खारा-खारा पानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह गहन भाव पिरोय हैं शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर भाव प्रणव गीत।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएं