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मन में जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
दोहे में तब तक
नहीं, होंगे पुलकित
भाव।१।
--
गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
कविता रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
--
दोहा वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
गिनो अक्षरों को जरा, एक बार श्रीमान।३।
--
लघु में लगता है
समय, एक-गुना श्रीमान।
अगर दो-गुना लग
रहा, गुरू उसे लो
जान।४।
--
दोहे में तो गणों
का, होता बहुत महत्व।
गण भी तो इस छन्द
के, हैं आवश्यक
तत्व।५।
--
तेरह ग्यारह से
बना, दोहा छन्द
प्रसिद्ध।
विषम चरण के अन्त
में, होता जगण
निषिद्ध।६।
--
कठिन नहीं है मित्रवर, दोहे का विन्यास।
इसको रचने के लिए, करो सतत्
अभ्यास।७।।
|
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शनिवार, 7 अप्रैल 2018
दोहे "करो सतत् अभ्यास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंअनमोल सीख !!! कृपया ऐसे ही सिखाते रहें। आप जैसे छंद के नियमों के ज्ञाता और उन नियमों के पालक विरले ही मिलते हैं। हम शब्दों और भावनाओं का संयोजन करते हैं किंतु रस, भाव और छंदों के नियमों की अनदेखी कर जाते हैं.... लेखन का हाल ऐसा है जैसे मूर्तियाँ बहुतेरी बन रही हैं किंतु कलात्मकता, शिल्प और लावण्य का अभाव हो गया है । मैं स्वयं भी अपवाद नहीं हूँ किंतु सीखने के लिए हमेशा तैयार.... बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आपका ऐसी रचनाओं को साझा करने के लिए!!! सादर प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंदोहे, सोरठे जैसे नाम आज की पीढ़ी के लिए तो अजूबा ही हैं !
जवाब देंहटाएंदोहों में ही आपने दोहे की संरचना बता दी। बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह....सुंदर
जवाब देंहटाएं