मौजूदा माहौल में, किसको
कहें महान।
आज देश में चल रहा, आतंकी
फरमान।।
भ्रष्ट आचरण देश में, फैला
चारों ओर।
सरकारी अनुभाग में, बैठे रिश्वतखोर।।
मुद्दा बनकर रह गया, आज
राम का नाम।
अब भी रहते टेण्ट में,
जन्मभूमि में राम।।
बना हुआ है देश में, हिंसा
का परिवेश।
मात्र किताबों में बचे,
ऋषियों के सन्देश।।
गाँधी पर भारी पड़ा, देखो
नाथूराम।
दोनों का इतिहास में, अमर
हो गया नाम।।
जर्रे-जर्रे मॆं नहीं, आज
राम-रहमान।
अब तो पूजा-पाठ के, आलीशान
मकान।।
धनवानों की कैद में, रहते
हैं गुणवान।
निर्बल का बलराम है, आज
राम का नाम।।
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गुरुवार, 31 जनवरी 2019
दोहे "जन्मभूमि में राम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बुधवार, 30 जनवरी 2019
दोहे "गाँधी का निर्वाण" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर
अहिंसा के अस्तित्व पर कुछ दोहे-
अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा के यहाँ, मिलते हैं सन्देश।।
चाहे काल भविष्य हो, वर्तमान या भूत।
सत्य-अहिंसा का किला, रहे सदा मजबूत।।
चाहे कोई खण्ड हो, या कोई हो काल।
जहाँ अहिंसा हो वहाँ, रहते अच्छे हाल।।
पूरब-पश्चिम, मध्य हो, या उत्तर-कशमीर।
सत्य-अहिंसा का सदा, बहता रहे समीर।।
सत्य-अहिंसा, प्रेम का, रहता जहाँ घनत्व।
कलम और तलवार का, होता अलग महत्व।।
देता सबको सीख है, गाँधी का निर्वाण।
हिंसा का परिवेश तो, ले लेता है प्राण।।
सत्य-अहिंसा से बना, भारत का गणतन्त्र।
पग-पग पर सद-भाव के, यहाँ गूँजते मन्त्र।।
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मंगलवार, 29 जनवरी 2019
दोहे "बन जाता संगीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अमल-धवल होता नहीं, सबका चित्त-चरित्र।
जाँच-परख के बाद ही, यहाँ बनाना मित्र।।।
रखना नहीं घनिष्ठता, उन लोगों के संग।
जो अपने बनकर करें, गोपनीयता भंग।।
जिसमें हो सन्देश कुछ, रचना ऐसा गीत।
सात सुरों के मेल से, बन जाता संगीत।।
जो समाज को दे दिशा, कहलाता साहित्य।
जीवन दे जो जगत को, वो होता आदित्य।।
महादेव बन जाइए, करके विष का पान।
धरा और आकाश में, देंगे सब सम्मान।।
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सोमवार, 28 जनवरी 2019
गीत "निखरा-निखरा है नील गगन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सबके मन को भाया
बसन्त।
आया बसन्त-आया बसन्त।।
उतरी हरियाली उपवन में,
आ गईं बहारें मधुवन
में,
गुलशन में कलियाँ चहक
उठीं,
पुष्पित बगिया भी महक
उठी,
अनुरक्त हुआ मन का
आँगन।
आया बसन्त, आया बसन्त।१।
कोयल ने गाया मधुर गान,
चिड़ियों ने छाया नववितान,
यौवन ने ली है अँगड़ाई,
सूखी शाखा भी गदराई,
बौराये आम, नीम-जामुन।
आया बसन्त, आया बसन्त।२।
हिम हटा रहीं
पर्वतमाला,
तम घटा रही रवि की
ज्वाला,
गूँजे हर-हर, बम-बम के स्वर,
दस्तक देता होली का
ज्वर,
सुखदायी बहने लगा पवन।
आया बसन्त, आया बसन्त।३।
खेतों में पीले फूल
खिले,
भँवरे रस पीते हुए
मिले,
मधुमक्खी शहद समेट रही,
सुन्दर तितली भर पेट
रही,
निखरा-निखरा है नील
गगन।
आया बसन्त, आया बसन्त।४।
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रविवार, 27 जनवरी 2019
ग़ज़ल "सिलसिला नहीं होता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रार का सिलसिला नहीं होता
ग़र न ज़ज़्बात होते सीने में
दिल किसी से मिला नहीं होता
आम में ज़ायका नहीं आता
वो अगर पिलपिला नहीं होता
तिनके-तिनके अगर नहीं चुनते
तो बना घोंसला नहीं होता
दाद मिलती नहीं अगर उनसे
तो बढ़ा हौसला नहीं होता
प्यार में बेवफा अगर होते
संग में काफिला नहीं होता
“रूप" आता नहीं बगीचे में,
फूल जब तक खिला नहीं होता
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शनिवार, 26 जनवरी 2019
दोहे "लोग रहे हैं खीझ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा का यहाँ, बना हुआ परिवेश।।
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मँहगाई से कर लिया, शासन ने अब मेल।
झूठे सपने दिखाकर, खेल रहे वो खेल।।
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जब से आयी देश में, बहुमत की सरकार।
महँगाई के सामने, जनता है लाचार।
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खेतीहर पर हो रहा, अब तो अत्याचार।
मनमानी पर है तुली, चुनी हुई सरकार।।
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आज आदमी मल रहा, अपने खाली अपने हाथ।
आगामी मतदान में, नहीं मिलेगा साथ।।
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भाषण लच्छेदार थे, पर थोथे थे बोल।
अच्छे दिन के स्वप्न तो, आज हो गये गोल।।
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आम जरूरत की हुईं, मँहगी सारी चीज।
देख सुशासन को यहाँ, लोग रहे हैं
खीझ।।
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शुक्रवार, 25 जनवरी 2019
गीत "गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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