ठण्डा पड़ा कुमाउँ
है, शीतल है गढ़वाल।
आज उत्तराखण्ड में,
जीना हुआ मुहाल।।
मौसम है हेमन्त
का, पर्वत पर हिमपात।
मैदानों में हो
रही, ओलों की बरसात।।
बादल नभ पर हैं
घने, बरस रहे हैं खूब।
बेमौसम बरसात से,
लोग रहे हैं ऊब।।
मौसम में बदलाव
का, ढंग हुआ विपरीत।
माघ मास में आज भी,
जीत रहा है शीत।।
चहल-पहल गुम हो
गयी, बाजारों से आज।
बर्फीली शीतल हवा,
करती सबको तंग।।
गंगा जी के घाट
पर, बरस रहा है शीत।
हुए आज बेमायने, भजन
और संगीत।।
ऐसा मौसम देखकर, रोने
लगा बसन्त।
नहीं हो रहा है
अभी, यहाँ शीत का अन्त।।
|
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मंगलवार, 22 जनवरी 2019
दोहे "ओलों की बरसात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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शीत का अंत तो अंतहीन हो गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छे दोहे.