डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक”
डा. शाश्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. हमारी आपसे अनेको बार फ़ोन पर बात होती रही है. इस बार की झुलसाने वाली गर्मी मे हमने रुख किया नैनीताल का और रास्ते मे हम मिले डा. शाश्त्री जी से जहां यह इंटर्व्यु सम्पन्न हुआ. आईये अब आपको मिलवाते हैं इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. शाश्त्री जी से.
ताऊ : हां तो शाश्त्री जी आप कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! आप जहां बैठे हैं. मैं इसी भारत के उत्तराखण्ड प्रदेश की नैनीताल कमिश्नरी में ऊधमसिंह नगर जनपद के इसी खटीमा शहर में रहता हूँ।
ताऊ : आप क्या करते हैं?
डा. शाश्त्री जी : एक औषधालय खोल रखा है। वहीं पर आयुर्वेदिक चिकित्सा करता हूँ।
ताऊ : हमने देखा है कि आप तुरत फ़ुरत कविताएं रच लेते हैं. अक्सर आप टिपणि मे भी कविताएं रच देते हैं? आपको कविताए लिखने का शौक कब से है?
डा. शाश्त्री जी : आप ये समझ लिजिये कि सन १९६५ से यानि जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था तब से ही कविता लिख रहा हूं.
ताऊ : फ़िर अवश्य आपकी कविताएं अवश्य कहीं ना कहीं ना प्रकाशित भी हुई होंगी?
डा. शाश्त्री जी : जी ताऊ जी, साहित्य प्रतिभा, अमर उजाला, उत्तर उजाला, चम्पक और उच्चारण आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं मे ये प्रकाशित होती रही हैं?
सन् 1991 में मैंने वैदिक सामान्यज्ञान पुस्तक लिखी थी। जिसकी भूमिका सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई-दिल्ली के तत्कालीन प्रधान स्वामी आनन्दबोध सरस्वती ने लिखी थी।
इसके सात भाग 1992 में प्रकाशित हुए। आज भी यह पुस्तक पाठ्यक्रम के रूप में मेरे द्वारा संचालित राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय,खटीमा में तथा आर्य समाज के कई विद्यालयों में कक्षा शिशु से कक्षा पंचम तक लगी हुई है।
ताऊ : ये उच्चारण क्या है? क्या सामने दिवार पर इसीके रजिस्ट्रेशन टंगे हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, बिल्कुल सही पहचाना. ये पाक्षिक अखबार ही था. मैने सन १९९६ से २००४ तक इस अखबार को निकाला.
ताऊ : वाह शाश्त्री जी, तो आप को लिखने पढने का पुराना शौक है. अब आपके जीवन की कोई अनोखी घटना बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, अनोखी घटना तो ऐसी कुछ नही है जो मैं आपको बताऊं?
ताऊ : चलिये अनोखी नही तो कोई अविस्मरणिय घटना ही सुना दिजिये?
डा. शाश्त्री जी : जी अविस्मरणीय भी याद नही आती.
ताऊ : चलिये हम याद दिलाये देते हैं, हमने सुना है कि आपमे और भाभीजी मे अक्सर अनबन होजाया करती थी और एक बार तो आप पुत्र को भी घर ऊठा लाये थे. याद आया क्या?
डा. शाश्त्री जी : (हंसते हुये..) अरे रे ताऊजी..आप भी कबके गडे मुर्दे उखाड लाये? कितनी पुरानी बात है? अब क्या बताऊं?
ताऊ : जी बताईये. आप ही जरा हमारे पाठकों को पूरी बात बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरा विवाह 1973 में हुआ था। वैवाहिक जीवन का अधिक अनुभव न होने के कारण पति-पत्नी में अक्सर अनबन हो जाया करती थी।
ताऊ : अनबन से क्या मतलब?
डा. शाश्त्री जी : अनबन से मतलब ये कि लड झगड़ लिया करते थे. एक बार धर्मपत्नि जी कुछ ज्यादा नाराज होगई तो वो मायके चली गयीं थी।
ताऊ : ओहो..बडा बुरा हुआ. आगे क्या हुआ फ़िर?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि 1974 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया था। अचानक मेरा भी पुत्र मोह जाग गया और कुछ अक्कल भी आ गयी थी।
ताऊ : जी.
डा. शाश्त्री जी : बस मैं अपनी ससुराल पहुंच गया और अपने 2 वर्षीय पुत्र को मोटर साइकिल पर उठा कर घर ले आया ।
ताऊ : फ़िर बाद मे क्या हुआ?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि दो दिन बाद पत्नी जी भी पुत्र मोह में स्वयं मेरे घर चली आयीं थीं।
ताऊ : ये तो चलो अच्छा ही हुआ. पर आपका लडना झगडना इसके बाद भी चालू ही रहा या इस घटना के बाद बंद हो गया?
डा. शाश्त्री जी : बस उस दिन के बाद से सामंजस्य ऐसा बैठा कि उनसे कभी अन-बन नही होती है। व्यक्ति छोटी-बड़ी घटनाओं से बहुत कुछ सीख लेता है। परन्तु सीखने की ललक होनी जरूरी है।
पौत्र प्रांजल और पौत्री प्राची
ताऊ : वैसे आपके शौक क्या क्या हैं?
डा. शाश्त्री जी : पुस्तकों का पठन-पाठन, गद्य-पद्य लेखन भी कर लेता हूँ।
ताऊ : और ?
डा. शाश्त्री जी : देशाटन के नाम पर आधा हिन्दुस्तान घूम चुका हूँ। जब मन होता हैं तो खाना भी स्वादिष्ट बना लेता हूँ।
ताऊ : आपको सख्त ना पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : चापलूस किस्म के मित्रों से सदैव परहेज करता हूँ। परन्तु वे मेरा पीछा छोड़ने को तैयार ही नही होते। ऐसे लोग भी मुझे सख्त नापसन्द हैं, जो अपनी ही कहते जाते हैं। दूसरों की सुनने को राजी नही होते हैं।
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : मुझे सफाई अधिक पसन्द है। साफ घर, साफ-पात्र, साफ वस्त्र, पुस्तक-कापियाँ करीने से जिल्द लगी हुई। और सबसे अधिक सीधे-सादे साफ-सुथरे लोग मुझे ज्यादा पसन्द आते हैं। परन्तु इसका मतलब आप हाथ की सफाई से मत निकाल लेना।
ताऊ : आपका घर देखकर तो यह बात साफ़ समझ में आ ही रही है कि आप निहायत ही साफ़ सफ़ाई पसंद आदमी हैं. अब आप हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर निवेदन करना चाहूंगा. पाठकगण आप को मेरा एक ही सुझाव है कि आप जो कुछ करें। पहले उसके गुण-दोष पर विचार लें। फिर आगे कदम बढ़ायें। ध्यान रखें ! मनोयोग से और निरन्तर अभ्यास से सब कुछ सम्भव है।
ताऊ : ये आपने बहुत ही सुंदर बात बताई हमारे पाठकों को. अब आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना हमारे पाठकों को बताईये.
डा. शाश्त्री जी : बात 1960-61 के दशक की है। परिवार में सबसे बड़ा होने के कारण सब का ध्यान मुझ पर ही था। अतः मुझे गरूकुल हरिद्वार पहुँचाने की पूरी तैयारी सबने कर ली थी।
ताऊ : जी. फ़िर आगे?
डा. शाश्त्री जी : अब पिता जी मुझे गुरूकुल पहुँचा तो आये परन्तु मेरा मन वहाँ न लगा। मैं शौच का बहाना बना कर गुरूकुल से भाग आया। पिता जी पुनः उसी गुरूकुल में मुझे छोड़ने के लिए गये।
ताऊ : फ़िर क्या आप गुरुकुल मे रुक गये दुबारा?
डा. शाश्त्री जी : ना, मैंने भी पिता जी के सामने तथा गरूकुल के संरक्षक महोदय के सामने यह नाटक किया कि मेरा मन अब गुरुकुल में लग गया है।
ताऊ : नाटक किया? पर क्यों?
डा. शाश्त्री जी : नाटक इसलिये जरुरी था कि मुझ पर निगाह ना रखें जिससे मुझे वापस भगने का मौका मिल सके. बस 3-4 घण्टे बाद मुझे जैसे ही मौका हाथ लगा मैं गुरूकुल से भाग आया। पिता जी रेल के पीछे डिब्बे में थे ओर मैं आगे के डिब्बे में। मैं घर भी उनसे पहे ही पहुँच गया था। इस घटना को मैं आज तक नही भुला पाया हूँ।
ताऊ : मतलब आप बचपन मे काफ़ी शरारती रहे हैं. वैसे आप मूलत: कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैं उत्तर-प्रदेश के नजीबाबाद का मूल निवासी हूँ। नजीबाबाद नवाबों का पुराना शहर है।
ताऊ : वहां की कोई मशहूर चीज भी है?
डा. शाश्त्री जी : हां वहाँ से 4 कि.मी. दूर नवाबो का एक पुराना किला भी है। जो सुल्ताना डाकू के किले के नाम से मशहूर है। आज भी इसका अस्तित्व बना हुआ है। किले के मध्य में कभी न सूखने वाली एक पोखर भी है।
ताऊ : ये अच्छी बात बताई आपने? किले की हालत कैसी है?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण आज यह किला वीरान पड़ा हुआ है। इसकी चाहरदीवारी के मध्य सैकड़ों बीघा जमीन मे सिर्फ खेती होती है। यदि पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दे तो यह एक पर्यटक स्थान के साथ-साथ सेना के कैम्प के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
डा. शाश्त्री के पिताजी और माताजी
ताऊ : आप संयुक्त परिवार मे रहते हैं. आपके परिवार मे कौन कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : जी हाँ! मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है। जिसमें 87 वर्षीय मेरे पिता जी, 85 वर्षिया मेरी माता जी, घर-गृहस्थी वाला बड़ा पुत्र, अविवाहित छोटा पुत्र, मैं ओर श्रीमती जी हैं। और परिवार में 10 वर्षीय पौत्र प्रांजल और 5 वर्षीया पौत्री प्राची है।
ताऊ : और कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : और तीन कुत्ते भी परिवार के ही सदस्य के रूप में इस घर की सुरक्षा में लगे हुए हैं। और हाँ ताऊ! एक बात तो बताना ही भूल गया। मैने भी एक रामप्यारी पाली हुई है। आप भी उसके दर्शन कर लें।
शाश्त्रीजी की रामप्यारी
ताऊ : कैसा लगता है संयुक्त परिवार मे रहना?
डा. शाश्त्री जी : बहुत अच्छा लगता है. संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे सामाजिकता आती है। सुख-दुख के समय अपनों का साथ व भरपूर प्यार मिलता है।
ताऊ : आप आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है।
ताऊ : आपको कुछ विशेषता लगी ब्लागिंग में?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, आप जो बात स्पष्ट रूप से कहने में झिझकते हैं, वह ब्लाग के माध्यम से आप दुनिया तक आसानी से पहुँचा सकते हैं। सच बात तो यह है कि ब्लाग विचारों के सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैंने ब्लाग जगत में 21 जनवरी 2009 में कदम रखा है।
ताऊ : आपका ब्लॉगिंग मे आना कैसे हुआ?
डा. शाश्त्री जी : हुआ यों कि मेरे एक मित्र ने अन्तर्जाल पर अपनी पत्रिका प्रकाशित की। मुझे उनका यह प्रयास पसन्द आया और मैने भी ब्लॉगिंग की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया। तब से प्रतिदिन ब्लाग पर कुछ न कुछ अवश्य लिखता हूँ।
ताऊ : आपका ब्लॉग लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरे लेखन की दिशा या दशा तो आप ब्लागर मित्र ही तय करेंगे। मैं तो गद्य और पद्य समानरूप से लिख ही रहा हूँ।
डा. रुपचन्द्र शाश्त्री "मयंक"
ताऊ : क्या राजनीति मे आप रुचि रखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मैं राजनीति में खासी रुचि रखता हूँ। शुरू से ही काँग्रेस के साथ जुड़ा रहा हूँ। सन् 2005 से 2008 तक उत्तराखण्ड सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में मैंने 3 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया है। (लेकिन वर्तमान में 2014 से भा.ज.पा. में हूँ।)
ताऊ : अरे वाह . यानि आप तो पूरे राजनितिज्ञ हैं? अब ये बताईये कि राजनीति मे आप किसे अपना आदर्श मानते हैं.
डा. शाश्त्री जी : पं0 नारायणदत्त तिवारी को मैं अपना आदर्श पुरुष मानता हूँ। क्योंकि उनका नारा उनके काम विकासोन्मुख रहे हैं। उनका काम था विकास और विकास, इसके सिवा और कुछ नही।
ताऊ : आप अब भी इसी पार्टी मे मे संतुष्ट हैं?
डा. शाश्त्री जी : नही अब मेरा काँग्रेस से माह भंग हो रहा है। विकास पुरुष पं0 नारायणदत्त तिवारी की उपेक्षा को लेकर मैं व्यथित और आहत हूँ।
(पं. नारायण दत्त तिवारी के साथ अन्तिम भेंट)
ताऊ : कुछ अपने बच्चों के बारे मे भी बताईये?
डा. शाश्त्री जी : मेरे दो पुत्र हैं। बड़ा नितिन इलैक्ट्रोनिक्स इंजीनियर है। छोटे पुत्र विनीत ने एम.काम.,बी.एड किया है। वो भी विवाहित है।
श्रीमती और श्री डा. रुपचन्द्र शाश्त्री
ताऊ : भाभीजी यानि कि आपकी जीवन संगिनी के बारे मे कुछ बताईये?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर बताऊंगा. जीवनसंगिनी का नाम श्रीमती अमर भारती है। एक घरेलू महिला होने के साथ-साथ मेरी अनुपस्थिति में औषधालय भी संभालती हैं.
ताऊ : और?
डा. शाश्त्री जी : और स्वयं के निजी विद्यालय (राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय) जूनियर हाई स्कूल की भी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं।
ताऊ : आप बुजुर्ग हैं. आपके पास जीवन का एक अनुभव है. आप हमारे पाठको को कुछ विशेष बात कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे.
शाश्त्री जी : ताऊ पहेली जी आज तक के जितने अंक मैंने देखे हैं। उनके अनुसार तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि इसके पीछे एक ऐसी सोच झलकती है जो सभी के सामान्यज्ञान में निश्चितरूप से अभिवृद्धि करती है। अर्थात ताऊ पहेली आम पहेलियों से हट कर है.
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन ? आपका क्या कहना है?
शाश्त्री जी : ताऊ कौन है? इसका तो सीधा-सादा अर्थ है पिता का ज्येष्ठ भ्राता। अर्थात् मान-मर्यादा और गुणें में जो बड़ा हो मेरे विचार से वही ताऊ है। यहां एक सहज हास्य बोध के साथ ताऊ गुप्त रुप से गहरी बात कह जाते हैं. बस मुझे ताऊ इसी रुप मे पसंद है.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
शाश्त्री जी : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अन्तर्जाल की एक जानी-मानी पत्रिका बन कर उभरी है। जो इसके नियमित पाठक हैं, उनके लिए तो यह पत्रिका किसी नशे से कम नही है। मैं जब तक ताऊनामा पढ़ नही लेता हूँ तब तक मुझे ऐसा लगता है जैसे कि दिनचर्या का कोई अधूरा काय्र छूट गया हो।
और अंत मे एक सवाल ताऊ से:-
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, मैं आपसे भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ। आपके मन में रामप्यारी का आइडिया कहाँ से आया है?
ताऊ : असल मे ये रामप्यारी सभी के अंदर है. ये एक भोला बचपन है. जिसको हम भूल चुके हैं बस उसी को याद दिलाने की एक छोटी सी कोशीश है.
तो यह थी ताऊ की एक अंतरंग बातचीत डा. शाश्त्री से.
कैसा लगा आपको शाश्त्री जी से मिलना.
अवश्य बताईयेगा.
अन्त मेंम देखिए शास्त्री जी की कुछ और तस्बीरें
बहुत रोचक शैली में लिया गया साक्षात्कार जिसमें आदरणीय शास्त्री जी व्यक्तित्व और कृतित्व पर आदरणीय ताऊ रामपुरिया जी ने प्रकाश डाला है । सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " अतिथि देवो भवः " (चर्चा अंक - 3622) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही अच्छा साक्षातकार है आदरणीय सर | आपके विषय में बहुत बातें जानी चित्र बहुत प्यारे हैं और रामप्यारी तो कमाल है | सादर --
जवाब देंहटाएंसमय के साथ कई प्रकार के अनुभव देखने को मिलते हैं जिंदगी में
जवाब देंहटाएंसाक्षात्कार में बहुत अच्छा और रोचक लगा ,
बहुत ही रोचक साक्षात्कार है आदरणीय। आपको और आपके परिवार के बारे में जानने का मौका मिला। सुंदर तस्वीरों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्रीजी, आपने अपने जीवन को सार्थकता और सफलता के साथ जिया है। आप हम सबके लिए एक प्रेरणा हैं। लेखन और ब्लॉगिंग में आपका योगदान किसी से छिपा नहीं है। यह साक्षात्कार साझा करने के लिए आपका सादर धन्यवाद। आपके परिवार, जीवनशैली और आपके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। सादर प्रणाम।
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