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सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास।
होली का होने लगा, जन-जन को आभास।।
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गेहूँ का अब हो गया, कुन्दन जैसा रूप।
सरसों और मसूर को, सुखा रही है धूप।।
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प्रेम और सौहार्द्र है, होली का आधार।
बैर-भाव को भूलकर, कर लो सबसे प्यार।।
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सन्तों के सपने करो, जीवन में साकार।
गले मिलो सब प्यार से, कहता ये त्यौहार।।
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दुनिया में कायम रहे, भाईचारा-प्यार।
रंगभेद को मेटता, होली का त्यौहार।।
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जो खुश होकर खेलता, उससे खेलो रंग।
जिसको मन से चाहते, उसे लगाओ अंग।।
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रंगों की बौछार हो, या पानी की धार।
मीठा है नमकीन भी, होली का त्यौहार।।
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
दोहे "कुन्दन जैसा रूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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समरसता का भाव समेटे अत्यंत सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय
भगवान से प्रार्थना है कि होली का त्यौहार हमेशा मीठा और नमकीन ही रहे, कभी कड़वा और खट्टा न हो.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे...
जवाब देंहटाएंवाह!!!