कुंकुम बिन्दी मेंहदी, काले-काले बाल।
रचकर दिखलाती हिना, अपना खूब कमाल।।
मेंहदी को मत समझना, केवल एक रिवाज।
सुहागिनों का गन्ध से, हिना खोलती राज।।
हरी-भरी रहती हिना, क्या पतझड़-मधुमास।
बिना हिना के सेज पर, खलता है सुख रास।।
बालक बृद्ध जवान को, देती है आनन्द।
शरबत लगता हिना का, जैसे हो मकरन्द।।
शोधन करता रक्त का, मेंहदी का अवलेह।
शिरोरोग को दूर कर, कुन्दन करती देह।।
चूर्ण आँवला मेंहदी, भृंगराज लो संग।
खिचड़ी केशों पर चढ़े, काला इससे रंग।।
मेंहदी और अरण्ड के, पत्तों को लो पीस।
जोड़ों की इस लेप से, मिट जाती है टीस।।
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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020
दोहे "मेंहदी का आनन्द" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना हूबहू मुलाकात मेरी रचना पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह! औषधीय गुण और उपयोगिता लिए महकती मेंहदी रचना ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०२-२०२०) को शब्द-सृजन-9 'मेहंदी' (चर्चा अंक-३६२०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर सृजन सर ,मेहँदी के इतने सारे औषधीय गुण ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं