निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
--
आज आदमी है बेचारा,
बौराया है ये जग सारा,
दूषित है परिवेश हमारा,
हे शिव! आकर आज वतन में,
डमरू का तुम नाद सुनाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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छाया है घनघोर अँधेरा,
नकली भगवानों ने घेरा,
बड़े-बड़े हैं तम्बू-डेरा,
सच्चाई को करो उजागर,
ढोंग और पाखण्ड हटाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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जीवन आशामुखी नहीं है,
अपने दुख से दुखी नहीं है,
इसीलिए जग सुखी नहीं है,
सम्बन्धों में नहीं मधुरता,
शंकर! मन का मैल मिटाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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लुप्त हो गयी है खुद्दारी,
जन-गण-मन में है मक्कारी,
गद्दी पर बैठी गद्दारी,
देशभक्ति को जीवित कर दो,
खुदगर्ज़ी पर रोक लगाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
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आज आपका अभिनन्दन है,
बेलपत्र-अक्षत-चन्दन है,
महादेव का ही वन्दन है,
जग में मार-काट क्रन्दन है,
मानवता को आज जगाओ।
निद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ।।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020
गीत "शंकर! मन का मैल मिटाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-02-2020) को "मन का मैल मिटाओ"(चर्चा अंक -3618) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
अनीता लागुरी"अनु"
वाह!!लाजवाब सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएंमानवता को आज जगाओ।
जवाब देंहटाएंनिद्रा-तन्द्रा दूर भगाओ
बहुत खूब.. सर ,सादर नमन
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन...।