गूँगी गुड़िया बोलती, अब बातें बेबाक।
चमत्कार को देखकर, दुनिया है आवाक।।
गया महीना माघ का, आया फागुन मास।
लोगों को होने लगा, गरमी का आभास।।
दस्तक देता द्वार पर, होली का त्यौहार।
धूल भरी चलने लगी, चारों ओर बयार।।
आया समय बसन्त का, खिलने लगा पलाश।
देख विफलताएँ कभी, होना नहीं निराश।।
हटा दीजिए चमन से, खर पतवार समूल।
आँचल में रखना सदा, रंग-बिरंगे फूल।।
जो प्रतिदिन रचना करे, कहते उसे कवीन्द्र।
जग को दे जो रौशनी, होता वही रवीन्द्र।।
महका उपवन देखकर, होता है दिलबाग।
वासन्ती परिवेश में, उमड़ रहा अनुराग।।
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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020
दोहे "आया फागुन मास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020
दोहे "नागफनी का रूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सुमन ढालता स्वयं को, काँटों के अनुरूप।
नागफनी का भी हमें, सुन्दर लगता रूप।
सियासती दरवेश अब, नहीं रहे अनुकूल।
मजबूरी में भा रहे, नागफनी के फूल।।
फूलों के बदले मिलें, उपवन में जब शूल।
ऐसा लगता गन्ध को, भ्रमर गये हैं भूल।।
देश-काल-परिवेश के, बदल गये हैं अर्थ।
उनको सारी छूट हैं, जो हैं आज समर्थ।।
कैसे रक्खें सन्तुलन, थमता नहीं उबाल।
पापी मन इंसान का, करता बहुत बबाल।।
अब मौसम के साथ में, बदल गया परिवेश।
काँटे भी देने लगे, गुलशन में उपदेश।।
नागफनी के चमन में, काँटों की चौपाल।
वासन्ती परिवेश में, जीवन है बदहाल।।
निखरा-निखरा व्योम है, खिली हुई है धूप।
निखर गया मधुमास में, नागफनी का रूप।।
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
दोहे "कुन्दन जैसा रूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास।
होली का होने लगा, जन-जन को आभास।।
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गेहूँ का अब हो गया, कुन्दन जैसा रूप।
सरसों और मसूर को, सुखा रही है धूप।।
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प्रेम और सौहार्द्र है, होली का आधार।
बैर-भाव को भूलकर, कर लो सबसे प्यार।।
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सन्तों के सपने करो, जीवन में साकार।
गले मिलो सब प्यार से, कहता ये त्यौहार।।
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दुनिया में कायम रहे, भाईचारा-प्यार।
रंगभेद को मेटता, होली का त्यौहार।।
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जो खुश होकर खेलता, उससे खेलो रंग।
जिसको मन से चाहते, उसे लगाओ अंग।।
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रंगों की बौछार हो, या पानी की धार।
मीठा है नमकीन भी, होली का त्यौहार।।
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बुधवार, 26 फ़रवरी 2020
दोहे "बन्द करो मनुहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्यारी में उगने लगी, अब जहरीली बेल।
खेतों में होने लगा, कैसा खूनी खेल।।
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धर्म-जाति के नाम पर, बढ़ने लगा जुनून।
राजनीति के जाल में, सिसक रहा कानून।।
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मान-मुनव्वल की अभी, बन्द करो मनुहार।
देशद्रोह पर कीजिए, हथियारों से वार।।
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दुशमन की जय बोलकर, जला रहे जो देश।
देश निकाले का उन्हें, कर दो अब आदेश।।
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दिल्ली में बेखौफ हो, डण्ड रहे जो पेल।
है धरने के नाम पर, उनका कोई खेल।।
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लिए तिरंगा हाथ में, बदल न पाये सोच।
मर्दन करने का उन्हें, करो नहीं संकोच।।
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जो भी पाकिस्तान के, बोल रहे हैं बोल।
अब उन सबके नाम को, करो देश से गोल।।
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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020
गीत "आई होली रे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आँचल में प्यार लेकर,
भीनी फुहार लेकर.
आई होली, आई होली,
आई होली रे!
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चटक रही सेंमल की कलियाँ,
चलती मस्त बयारे।
मटक रही हैं मन की गलियाँ,
बजते ढोल नगारे।
निर्मल रसधार लेकर,
फूलों के हार लेकर,
आई होली, आई होली,आई होली रे!
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मीठे सुर में बोल रही है,
बागों में कोयलिया।
कानों में रस घोल रही है,
कान्हा की बाँसुरिया।
रंगों की धार लेकर,
अभिनव शृंगार लेकर,
आई होली, आई होली, आई होली रे!
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लहराती खेतों में फसलें,
तन-मन है लहराया.
वासन्ती परिधान पहनकर,
खिलता फागुन आया,
महकी मनुहार लेकर,
गुझिया उपहार लेकर,
आई होली, आई होली, आई होली रे!
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रविवार, 23 फ़रवरी 2020
"ताऊ डॉट इन पर 2009 में मेरा साक्षात्कार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
परिचयनामा : डा. रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक"
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