--नवसम्वत्सर
आ गया, गया पुराना साल। |
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मंगलवार, 13 अप्रैल 2021
दोहे "भारतीय नववर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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कोरोना जैसा नहीं, रहे कहीं भी रोग।
जवाब देंहटाएंबिन भय के विचरण करें, सारे जग में लोग।।
सचमुच कोरोना की कै़द में हैं सभी..
बढ़िया दोहे...
एक मंच पर बैठकर, करो विचार-विमर्श।
जवाब देंहटाएंअपने प्यारे देश का, कैसे हो उत्कर्ष।।
--
मर्यादा के साथ में, खूब मनाओ हर्ष।
बालक-वृद्ध-जवान को, मंगलमय हो वर्ष।। ..बहुत सुन्दर प्रेरक दोहे, आपको नववर्ष तथा नवरात्रि के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई.. जिज्ञासा सिंह ।
बाधाएं सब दूर हो ,आपस में हो मेंल
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत पंक्तियां
Virendra Sharma
जवाब देंहटाएं@Veerubhai1947
·
14s
उच्चारण: दोहे "भारतीय नववर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मय... https://uchcharan.blogspot.com/2021/04/blog-post_13.html?spref=tw
बढ़े कोरोना बढ़ते - बढ़ते
दिल्ली के बाॅर्डर पर जाय,
जितने भी नेता किसान हैं
सबको हाॅस्पिटल ले जाय...
बेहद की प्रासंगिक रचना धारदार तंज लिए रचनात्मकता के संग साथ ,
बढ़े कोरोना बढ़ते - बढ़ते
जवाब देंहटाएंदिल्ली के बाॅर्डर पर जाय,
जितने भी नेता किसान हैं
सबको हाॅस्पिटल ले जाय...
हो सकती पूरी ये आस ,
आम होय चाहे ख़ास
कोविड का यकसां संत्रास।
बेहद की प्रासंगिक रचना धारदार तंज लिए रचनात्मकता के संग साथ ,व्यंग्य वही सार्थक, जो कुछ करने को उकसाये ,विशाल भाई चर्चित हो जाय
हाहाकार मचे चहुँ ओर
तब हम फिर टीवी पर आयँ,
कहें भाइयों - बहनों आओ
हम फिर से एकजुट हो जायँ...
आज रात को आठ बजे सब
अपनी - अपनी छत पर आय,
दो गज दूर हो मास्क लगाकर
अबकी माथा पीटा जाय...
पाक - बांग्लादेश - श्रीलंका
इनको तो दें फ्री वैक्सीन,
ताकि ये एक सुर में बोलें
भारत दोस्त है - दुश्मन चीन...
हँसी - हँसी में बात कही ये
लेकिन बात बड़ी ग॔भीर,
काँटे से काँटा निकले है
ज़हर से जाये ज़हर की पीर...
कहते हैं 'चर्चित' कि जागो
ओ माय ह्वाइट दाढ़ी मैन,
छोड़ इलेक्शन हिस्ट्री सोचो
कम आॅन डू इट यू कैन...
- विशाल चर्चित
veerusa.blogspot.com
कट्टरपन्थी मत बनो, मन को करो उदार।
केवल हिन्दू वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।।
--बाधाएँ सब दूर हों, आपस में हो मेल।
मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
--
एक मंच पर बैठकर, करो विचार-विमर्श।
अपने प्यारे देश का, कैसे हो उत्कर्ष।।
--
कोरोना से मुक्त हो, अपना प्यारा देश।
सारे ही संसार में, बने विमल परिवेश।।
सदाशयता सार्थकता धनात्मक सोच की परवाज़ हैं शस्त्री जी के दोहे
सार्थक ग़ज़ल कही विवेक ओंकार ने
दर्द बयाँ करती है वो अब मज़लूमों-मज़दूरों का,
क़ैद नहीं है आज ग़ज़ल ऊँचे महलों-दरबारों में।
फुटपाथों पर चलने वालों का भी थोड़ा ध्यान रहे,
बेशक आप चलें सड़कों पर लंबी - लंबी कारों में।
बढ़िया दोहे
जवाब देंहटाएंशानदार दोहे आदरणीय। हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंसादर ।
सदैव की तरह अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएं