पुराने परिवेश में राम के देश में पग-पग पर थीं मर्यादाएँ जीवित थे आचरण भाषा में थी व्याकरण शुद्ध थे अन्तःकरण किन्तु आज चरित्र का ह्रास हो रहा है विकास द्रोपदियों का चीर हरण सभ्यता का विनाश अबला सीताओं का हरण हम वर्ण-संकर कैसे हो गये? राम के वंशज कहाँ खो गये? चारों ओर रावण ही रावण नजर आते हैं और राम भय और लज्जा से घरों में छिप जाते हैं सीधी सी बात है रावण ज्यादा और राम कम हैं इसी बात का तो गम है वाह.... राक्षस हैं या रक्त-बीज लाखों जलाते हैं हर साल करोड़ों पैदा हो जाते हैं अगले साल!! |
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गुरुवार, 10 सितंबर 2009
‘‘करोड़ों पैदा हो जाते हैं अगले साल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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चारों ओर
जवाब देंहटाएंरावण ही रावण
नजर आते हैं
और राम
भय और लज्जा से
घरों में छिप जाते हैं
सीधी सी बात है
रावण ज्यादा और राम कम हैं
इसी बात का तो गम है
वाह....
राक्षस हैं या रक्त-बीज
लाखों जलाते हैं
हर साल
करोड़ों पैदा हो जाते हैं
अगले साल!!
waah............kya khoob likha hai............aur satya likha hai..............har ore ravanon ka hi bobala hai...........ek katu sachchayi ko aapki lekhni ne kalambaddh kiya hai..........badhayi
आज चरित्र का ह्रास
जवाब देंहटाएंहो रहा है विकास
चरित्र के ह्रास की कीमत पर विकास वाकई दुखदायी है.
जब तक राम छिपते रहेंगे रावण तो अट्टहास लगाते ही रहेंगे.
बहुत सुन्दर रचना
चारों ओर
जवाब देंहटाएंरावण ही रावण
नजर आते हैं
और राम
भय और लज्जा से
घरों में छिप जाते हैं........WAH KYA BAAT HAI......
एक और उत्कृष्ट कृति, शास्त्री जी ! दुर्भाग्य्बश यही एक कटु सत्य है !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खुब, आज के समाज का दर्पण दिखाता सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंहम वर्ण-संकर कैसे हो गये?
जवाब देंहटाएंराम के वंशज कहाँ खो गये?
बहुत अच्छा लिखा है
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंराक्षस हैं या रक्त-बीज
जवाब देंहटाएंलाखों जलाते हैं
हर साल
करोड़ों पैदा हो जाते हैं
अगले साल!!
aapne bilkul sahi chitran kiya hai..... samaaj ka.....waaqai mein.... raavan zyada hain aur ram kam.... kya khoob likha hai aapne....
bahut hi oomda kavita
अदभुत
जवाब देंहटाएं---
Tech Prevue: तकनीक दृष्टा
अद्भुत से सौदार्य पूर्ण शब्द हो तो वो मैं इस कविता को देता हूं।
जवाब देंहटाएंयह रावण कभी भी नहीं मरेगा क्युकी हम उसे मरने नहीं देना चाहते |
जवाब देंहटाएंहर एक के अन्दर राम और रावण दोनों है और यह उस बन्दे पर निर्भर करता है की वोह किस को फलता-फूलता देखना चाहता है ?
जब तक हम अपने अन्दर रावण को पनपने देगे, समाज में रावण रोज़ पैदा होगे !!
परेशानी ये है कि हम हर साल रावण नहीं जलाते बल्कि काले धन से तैयार रावण के बड़े से बड़े पुतले जलाते हैं। उम्मीद करिये कि इस बार अपने अपने भीतर के रावण को जलाएं ताकि अगले साल से ये राम-रावण का संतुलन ज़रा सुधर सके। मैंने
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग की शुरुआत ही इस विषय पर पोस्ट के साथ की थी- http://isibahane.blogspot.com/2007/10/blog-post_21.html
चारों ओर
जवाब देंहटाएंरावण ही रावण
नजर आते हैं
और राम
भय और लज्जा से
घरों में छिप जाते हैं
बिलकुल सच लिखा आप ने अपनी कविता मै... आज मानवता कही मुंह छुपाती फ़िर रही है इन नंगो के राज मै.धन्यवाद
बहुत सुन्दर बहुत सत्य !!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंचारों ओर
जवाब देंहटाएंरावण ही रावण
नजर आते हैं
और राम
भय और लज्जा से
घरों में छिप जाते हैं
बिल्कुल सच लिखा आपने!! लाजवाब रचना!!
बेहतरीन और सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया! आपने सही कहा है आज के ज़माने में देखा जाए तो चारों और सिर्फ़ रावण ही रावण नज़र आते हैं और राम शर्म से
जवाब देंहटाएंछिपे बैठे होते हैं! अद्भूत रचना!
करोडों पैदा हो जाते हैं हर साल ...न सिर्फ पैदा होते हैं बल्कि हर साल लम्बे होते जाते हैं..
जवाब देंहटाएं" सबसे ऊँचा हमारा रावण " ऐसे विज्ञापन मुंह चिढाते से प्रतीत होते हैं..."सबसे ऊँचा हमारा राम" यह कोई नहीं कहता ..!!
बहुत अच्छी रचना ..!!