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गजब है इस दंगल की महिमा ।
जवाब देंहटाएंइस मंगलमय दंगल में अनदेखे भी अपने बन जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसटीक भाव , बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंसर बहुत सुन्दर रचना . आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आभार....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वसुधा है परिवार, नही है भेद देश का, भरा हुआ अभिमान, सभी में है स्वदेश का, नौ गज के सब पीर, बसे हैं इस दंगल में।
जवाब देंहटाएंस्वागत है। आभार ।
वाह शास्त्री जी वाह ,
जवाब देंहटाएंमजा आ गया
बहुत सुन्दर है ये अखाडा बधा इस् मंगलमय दंगल के लिये
जवाब देंहटाएंdangal ki mahima ko vandan.
जवाब देंहटाएंvastav men internet ka jaadoo aisa hi hota hai.
जवाब देंहटाएंachcdhha bandha hai.
badhai.
मनोहर रचना
जवाब देंहटाएंउड़नतश्तरी सा समीर, बहता जाता है, शिकवे और शिकायत भी, सहता जाता है, प्रीत-रीत-मनुहार बसी है, इस दंगल में।
जवाब देंहटाएंbahut sahi........
yeh dangal dekh ke achcha laga........
आप ने तो इस दंगल को भी मंगल सा बना दिया बहुत सुंदर कविता कही.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
उड़नतश्तरी सा समीर, बहता जाता है, शिकवे और शिकायत भी, सहता जाता है, प्रीत-रीत-मनुहार बसी है, इस दंगल में।
जवाब देंहटाएंab dangal kahan hai sab mangal hi mangal hai..
acchi lagi aapki rachna..
बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने!
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