नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
शजर मशगूल हैं अपने फलों को आज खाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
दुआएँ कैद हैं अब तो, गुनाहों की दुकानों में। नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। |
---|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 19 सितंबर 2009
‘‘इस जालिम जमाने में’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
नदी-तालाब खुद प्यासे, बदन में घुट रही साँसें,
जवाब देंहटाएंप्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
सुन्दर रचना शास्त्री जी !!
shastri ji...
जवाब देंहटाएंbas ek word hai aapki is rachna ke liye///
"waah"
नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
जवाब देंहटाएंप्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
वाह ! बहुत खूब, अति सुन्दर !!
बहुत बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंदरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में।नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
जवाब देंहटाएंkitna sahi likha hai...........bahut badhiya.
प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
जवाब देंहटाएंनही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।
दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने
मयक जी लाजवाब रचना है बधाई
दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,
जवाब देंहटाएंचिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में।
बहुत सुन्दर भाव
क्या खूब लिखा है
लगे हैं पुण्य पर पहरे, दया के बन्द दरवाजे,दुआएँ कैद हैं अब तो, गुनाहों की दुकानों में।नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।
जवाब देंहटाएंआभार ।
दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,
जवाब देंहटाएंचिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।
ab ek hi shabd kahunga.... ki bahut hi achchi hai..... apki rachnayen dil ko choo le letin hain....
बहुत सुंदर फोटो लगाया आपने .. और रचना के बारे में क्या कहना .. वो तो लाजबाब रहती ही है !!
जवाब देंहटाएं"नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
जवाब देंहटाएंप्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।"
क्या खूब कही है, इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई.
नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
जवाब देंहटाएंप्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
बहुत खूब.अच्छी सुन्दर रचना के लिए बधाई.
Copy
जवाब देंहटाएंPaste
Vaah !
बहुत सुन्दर रचना । आभार ।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ, कितना कहूँ, जो भी कहूँ, वह कम है |
आपकी रचना में कोई नुक्स निकालूँ , इतना कहाँ मुझ में दम है ??
आप लिखते रहे युही सदा , आप रचते रहे युही सदा , यह दुआ है मेरी,
दिल से लिखने वालो की तादाद आज वैसे भी कम है !!
बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनाएं |
बहुत अच्छी पोस्ट है। बहुत-बहुत बधाई। नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें..........
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएं'दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,
चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में।'
बहुत खूब कहा है आपने. हर अशार मन को छूता है. आज के समय का सत्य देखकर जो चुभन होती है, उसका सच्चा बयान है ये ग़ज़ल ! चाहता हूँ, मेरी प्रसन्नता और युग-बोध की पीडा--दोनों आप तक पहुंचे; रचना की सफलता की प्रसन्नता और इस ग़ज़ल के माध्यम से बख्शी हुई वेदना !!
हाँ, ये रेखांकित करना चाहता हूँ कि आपकी पिछले दिनों पोस्ट की हुई रचाएं फ्रेम-मंडित होने के कारण मैं पढ़ नहीं सका, फलतः कुछ लिख न सका ! सादर-- आ.
इतना ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने कि मैं शब्दहीन हो गई! सही में शास्त्री जी आपकी रचनाओं का जवाब नहीं! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंछलक जाते हैं अब आँसू, गजल को गुनगुनाने में।
जवाब देंहटाएंनही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
वाह वाह !!
छलक जाते हैं अब आँसू, गजल को गुनगुनाने में।नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।। waaqai mein is zamaane mein chain ......... aaraam nahi hai..........
जवाब देंहटाएंbahut hi oomda poem.........