गुनगुनी सी धूप में, मौसम गुलाबी हो
गया।
कुदरती नवरूप का, जीवन शराबी हो गया।। इश्क की दीवानगी पर, रंग होली का चढ़ा। घाघरे के साथ फैशन, तंग चोली का बढ़ा।। प्रेमियों के, पार्क में जमघट नजर आने लगे! मस्त होकर नीम, जामुन-आम बौराने लगे।। चीड़ के उन्मुक्त पादप, मस्त हो लहरा रहे। पर्वतों की गोद में, निर्झर तराने गा रहे।। छोड़कर कैलाश, शिवजी मन्दिरों में आ गये! बेलपत्रों के शजर, सौन्दर्य अनुपम पा गये।। तन हुए हैं पल्लवित, मन मुदित और हर्षित हुए। सुमन की छवि देखकर, षटपद् सभी मोहित हुए।।
मस्त मौसम देखकर, तन-मन बसन्ती हो
गये।
आ गया ऋतुराज, घर-आँगन बसन्ती हो गये।। |
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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015
“मौसम गुलाबी हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंBahut sunder post...
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