कुटिलता के भाव को पहचानते हैं,
शत्रुता दिल में नहीं हम ठानते हैं।
वो बहुत खुलकर चलाते बाण अपने,
किन्तु हम चुपचाप सहना जानते हैं।।
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हम सुमन के हैं हितैषी, गन्ध को पहचानते हैं,
इसलिए हमसे कुटिल-काँटे लड़ाई ठानते हैं।
छेदते हैं जो सुकोमल पुष्प का नाजुक बदन,
ठोकरों से हम उन्हें, हरदम कुचलना जानते हैं।।
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बुज़दिली! दरियादिली को मत समझना,
दिल्लगी! दिल की लगी को मत समझना।
वक्त आने पर बहा देंगे रुधिर की धार को,
खड्ग को लाचार इतना मत समझना।।
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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015
"कुटिल-काँटे लड़ाई ठानते हैं-तीन मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआस्था और ज्ञान !
newpost कहानी -विजयी सैनिक
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने: )
कुटिलता के भाव को पहचानते हैं,
जवाब देंहटाएंशत्रुता दिल में नहीं हम ठानते हैं।
वो बहुत खुलकर चलाते बाण अपने,
किन्तु हम चुपचाप सहना जानते हैं।।
--bahut sundar bhavabhvyakti .badhai
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा !
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास