न मजमून लिखते, न कुछ बात होती
बताओ तो कैसे मुलाकात होती
अगर दोस्ती है तो शिकवे भी होंगे
न शक कोई होता, न कुछ घात होती
अगर तुम न प्यादे को आगे बढ़ाते
न शह कोई पड़ती, न फिर मात होती
दिखाता न सूरत अगर चाँद अपनी
न फिर ईद होती न सौगात होती
अगर तुम न छुप-छुप के मिलते चमन में
सुहानी न फिर चाँदनी रात होती
अगर "रूप" अपना दिखाते न दिलवर चमकती न बिजली न बरसात होती |
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शुक्रवार, 20 मई 2016
ग़ज़ल "चमकती न बिजली न बरसात होती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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