रौनक घर में तुमसे ही है,
तुमसे ही अस्तित्व हमारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
खनक रहे हैं बर्तन सारे,
चहक रही है भोजनशाला।
भाँति-भाति के पकवानों से,
महक रही अवगुंठित माला।
रोटी-दाल-भात सबमें ही,
रचा-बसा अमृत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
तुमसे ही जग अच्छा लगता,
तुमसे ही है दुनियादारी।
तुमसे ही फल-फूल रही है,
वंश-बेल की ये फुलवारी।
धन्य हुए हैं बेटे-पोते,
पाकर के मातृत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
चाहे आलीशान भवन हो,
लेकिन घर है घरवाली से।
उपवन तो सुरभित होता है,
केवल उपवन के माली से।
रमा हुआ घर की माटी के,
कण-कण में है तत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017
गीत "तुमसे ही है दुनियादारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 27 फ़रवरी 2017
गीत "पछुआ पश्चिम से है आई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मौसम ने ली है अँगड़ाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
पर्वत का हिम पिघल रहा है,
निर्झर बनकर मचल रहा है,
जामुन-आम-नीम गदराये,
फिर से बगिया है बौराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
रजनी में चन्दा दमका है,
पूरब में सूरज चमका है,
फुदक-फुदककर शाखाओं पर,
कोयलिया ने तान सुनाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
वन-उपवन की शान निराली,
चारों ओर विछी हरियाली,
हँसते-गाते सुमन चमन में,
भँवरों ने गुंजार मचाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
सरसों का है रूप सलोना,
कितना सुन्दर बिछा बिछौना,
मधुमक्खी पराग लेने को,
खिलते गुंचों पर मँडराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
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रविवार, 26 फ़रवरी 2017
दोहे "सर्दी गयी सिधार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब पछुआ चलने लगी, सर्दी गयी सिधार।
कुछ दिन में आ जायगा, होली का त्यौहार।१।
सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास।
होली का होने लगा, जन-जन को आभास।२।
अंगारा बनकर खिला, वन में वृक्ष पलाश।
रंग, गुलाल-अबीर की, आने लगी सुवास।३।
गेहूँ पर हैं बालियाँ, कुन्दन सा है रूप।
सरसों और मसूर को, सुखा रही है धूप।४।
अम्मा मठरी बेलती, सजनी तलती जाय।
सजना इनको प्यार से, चटकारे ले खाय।५।
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शनिवार, 25 फ़रवरी 2017
ग़ज़ल "1975 में रची गयी मेरी एक पेशकश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे
ये गुस्साल ऐसे कफन बेच देंगे
बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी
ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे
सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर
ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे
लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं,
समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे
सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी
ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे
जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं
ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे
जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है
वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे
लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा
बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे
ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं
लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे
अगर इनके वश में हो वारिस जहाँ का
ये उसके हुनर और फन बेच देंगे
जुलम-जोर शायर पे हो गरचे इनका
ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे
‘मयंक’ दाग
दामन में इनके बहुत हैं
ये अपने ही परिजन-स्वजन बेच देंगे
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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017
दोहे "महाशिवरात्रि" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दर्शन करने के लिए, लम्बी लगी कतार।१।
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बेर-बेल के पत्र ले, भक्त चले शिवधाम।
गूँज रहा है भुवन में, शिव-शंकर का नाम।२।
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काँवड़ लेकर आ गये, नर औ’ नार अनेक।
पावन गंगा नीर से, करने को अभिषेक।३।
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जंगल में खिलने लगा, सेमल और पलाश।
हर-हर, बम-बम नाद से, गूँज रहा आकाश।४।
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गेँहू बौराया हुआ, सरसों करे किलोल।
सुर में सारे बोलते, हर-हर, बम-बम बोल।५।
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शिव जी की त्रयोदशी, देती है सन्देश।
ग्राम-नगर का देश का, साफ करो परिवेश।६।
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देवों ने अमृत पिया, नहीं मिला वो मान।
महादेव शिव बन गये, विष का करके पान।७।
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नर-वानर-सुर मानते, जिनको सदा सुरेश।
विघ्नविनाशक के पिता, जय हो देव महेश।८।
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सच्चे मन से जो करे, शिव-शंकर का ध्यान।
उसको ही मिलता सदा, भोले का वरदान।९।
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"सात बार रंग बदलता है पत्थर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत "शिव आराधना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हे नीलकंठ हे महादेव!
हे नीलकंठ हे महादेव!
तुम पंचदेव में महादेव!!
तुम विघ्नविनाशक के ताता
जो तुमको मन से है ध्याता
उसका सब संकट मिट जाता
भोले-भण्डारी महादेव!
तुम पंचदेव में महादेव!!
कर्ता-धर्ता-हर्ता सुधीर
तुम सुरसेना के महावीर
दुर्गम पर्वतवासी सुबीर
हे निराकार-साकार देव!
तुम पंचदेव में महादेव!!
नन्दी तुमको लगता प्यारा
माथे पर शशि को है धारा
धरती पर सुरसरि को तारा
हे कालकूट हे महादेव!
तुम पंचदेव में महादेव!!
त्रिशूल. जटा, डमरूधारी
दुष्टों के हो तुम संहारी
बाघम्बरधारी वनचारी
हे दुष्टदलन, हे महादेव!
तुम पंचदेव में महादेव!! जो शिवलिंग की पूजा करता वो पापकर्म से है डरता भवसागर से वो ही तरता उस पर करते तुम कृपा देव! तुम पंचदेव में महादेव!! |
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017
दोहे "बिगड़ रहा परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हरकत से नापाक की, बिगड़ रहा परिवेश।
हमले सेना शिविर पर, झेल रहा है देश।।
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करो-मरो की होड़ में, हैं मशगूल जवान।
लेकिन प्रमुख वजीर की, है खामोश जबान।।
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मत को पाने के लिए, सड़क रहे हैं नाप।
सीमा के हालात पर, रहते हैं चुपचाप।।
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मातम के माहौल में, मना रहे हैं जश्न।।
मुद्दों में हैं दब गये, सभी सुलगते प्रश्न।।
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क्यों बैरी को गोद में, खिला रहे आदित्य।
भारी रक्षाबजट का, बतलाओ औचित्य।।
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मीठी गोली से नहीं, घटे भयंकर रोग।
अस्त्र-शस्त्र का ही करो, बैरी पर उपयोग।।
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घुस कर घर में शत्रु के, डट कर करो प्रहार।
अभी समय अनुकूल है, करो आर या पार।।
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