सरदी अब घटने लगी, चहका है मधुमास।
खेतों से नव-अन्न की, आने लगी सुवास।।
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बया नीड़ से झाँकती, अपने चारों ओर।
हरित धरा पर
हो गयी, अब तो सुन्दर भोर।।
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धूम मचाने आ गया, फिर से अब ऋतुराज।
बदल गया मधुमास में, सबका आज मिजाज।।
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जोड़ों पर चढ़ने लगा, फिर से इश्क बुखार।
वादों की चलने लगी, अब तो मस्त बयार।।
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लगा पिघलने हिमालय, बहता शीतल नीर।
काँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के वीर।।
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मौसम आवारा हुआ, उमड़ रहा है प्यार।
नेह-नीर का पान कर, फूल बने उपहार।।
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बिखरे चारों ओर हैं, प्रेम-दिवस के रंग।
दकियानूसी लोग तो, करें रंग में भंग।।
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रविवार, 5 फ़रवरी 2017
दोहे "चहका है मधुमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut hi sundar geet...
जवाब देंहटाएंजोड़ों पर चढ़ने लगा, फिर से इश्क बुखार।
जवाब देंहटाएंवादों की चलने लगी, अब तो मस्त बयार।।
बिखरे चारों ओर हैं, प्रेम-दिवस के रंग।
दकियानूसी लोग तो, करें रंग में भंग।।
....आने वाला है प्रेम दिवस ....
बहुत सुन्दर ....
बहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएं