फिर से अपने खेत में।
सरसों ने पीताम्बर पाया,
फिर से अपने खेत में।।
हरे-भरे हैं खेत-बाग-वन,
पौधों पर छाया है यौवन,
झड़बेरी ने "रूप" दिखाया,
फिर से अपने खेत में।।
नये पात पेड़ों पर आये,
टेसू ने भी फूल खिलाये,
भँवरा गुन-गुन करता आया,
फिर से अपने खेत में।।
धानी-धानी सजी धरा है,
माटी का कण-कण निखरा है,
मोहक रूप बसन्ती छाया,
फिर से अपने खेत में।।
पर्वत कितना अमल-धवल है,
गंगा की धारा निर्मल है,
कुदरत ने सिंगार सजाया,
फिर से अपने खेत में।।
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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017
गीत "बौराई गेहूँ की काया (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर ..
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