जो दिल से उपजे वही, होता सच्चा प्यार।
मिलन नहीं है वासना, आलिंगन उपहार।१।
पश्चिम के परिवेश की, ले करके हम आड़।
आलिंगन के नाम पर, करते हैं खिलवाड़।२।
एकदिवस के लिए क्यों, करते हो व्यापार।
जीवनभर करते रहो, मीठा-मीठा प्यार।३।
मानवता अपनाइए, यही हमारा मन्त्र।
वासनाओं के लिए क्यों, ढोंग और षड़यन्त्र।४।
अपनाओ निज सभ्यता, छोड़ विदेशी ढंग।
आलिंगन के साथ हो, जीवनभर का संग।५।
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रविवार, 12 फ़रवरी 2017
दोहे "आलिंगन उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर।
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