आवारा बादल हुए,
खुद ही पीते नीर।
सावन सूखा जा रहा,
धरती हुई अधीर।।
नभ में बादल
गरजते, चपला करती नृत्य।
भूल गये बरसात में,
बादल अपना कृत्य।।
सूरज अब भी गगन
में, रौब रहा है झाड़।
तेज धूप के तेज
से, घन को रहा पछाड़।।
बिन बादल के हो
गया, सावन में आकाश।
सूरज ने बरसात
में, लिया नहीं अवकाश।।
चौमासे में मत करो,
इतना अब आराम।
जनता तुम्हें
पुकारती, बरसो अब घनश्याम।।
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मंगलवार, 1 अगस्त 2017
दोहे "बरसो अब घनश्याम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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