मेरी गंगा भी तुम, और यमुना भी तुम,
तुम ही मेरे सकल काव्य की धार हो। जिन्दगी भी हो तुम, बन्दगी भी हो तुम,
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।
मुझको जब से मिला आपका साथ है, शह मिली हैं बहुत, बच गईं मात है, तुम ही मझधार हो, तुम ही पतवार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।
बिन तुम्हारे था जीवन बड़ा अटपटा, पेड़ आँगन का जैसे कोई हो कटा, तुम हो अमृत घटा तुम ही बौछार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।
तुम महकता हुआ शान्ति का कुंज हो, जड़-जगत के लिए ज्ञान का पुंज हो, मेरे जीवन का सुन्दर सा संसार हो। गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।। तुम ही हो वन्दना, तुम ही आराधना, दीन साधक की तुम ही तो हो साधना, तुम निराकार हो, तुम ही साकार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।
आस में हो रची साँस में हो बसी, गात में हो रची, साथ में हो बसी, विश्व में ज्ञान का तुम ही भण्डार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।
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मंगलवार, 22 अगस्त 2017
वन्दना "ज्ञान का तुम ही भण्डार हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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सुन्दर वन्दना।
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