मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।
दिखा रहा है आइना, समय-समय का फेर।१।
समय-समय की बात है, समय-समय के ढंग।
जग में होते समय के, अलग-अलग ही रंग।२।
पल-पल में है बदलता, सरल कभी है वक्र।
रुकता-थकता है नहीं, कभी समय का चक्र।३।
समय न करता है दया, जब अपनी पर आय।
ज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल चटाय।४।
गया समय आता नहीं, करनी को कर आज।
मत कर सोच-विचार तू, करले अपने काज।५।
जीवन के अध्याय में, समय न होता मीत।
दुनियाभर में समय की, होती अपनी रीत।६।
देख रहा है मनुज सब, होकर लापरवाह।
लेकिन चाहत की सदा, बढ़ती जाती चाह।७।
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बुधवार, 9 अगस्त 2017
दोहे "समय-समय का फेर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसमय न करता है दया, जब अपनी पर आय।
जवाब देंहटाएंज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल चटाय।४।
sundar dohe
@मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर, दिखा रहा है आइना, समय-समय का फेर...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया