होते गीत-अगीत हैं, कविता का आधार।
असली लेखन है वही, जिसमें हों उदगार।।
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मंजिल पर हर कदम का, रखना सम अनुपात।
स्वारथ से बनती नहीं, जग में कोई बात।।
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जो भूखा हो ज्ञान का, दो उसको उपदेश।
जितने से जीवन चले, उतना करो निवेश।।
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तालाबों की पंक में, खिले कमल का फूल।
वो ही तो परिवेश है, जो होता अनुकूल।।
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चन्दा से है चाँदनी, सूरज से है धूप।
सबका अपना ढंग है, सबका अपना रूप।।
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थोड़े से पीपल बचे, थोड़े बरगद-नीम।
इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज हकीम।।
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परछाई में देखते, लोग यहाँ तसबीर।
थोड़े दिन की ही बची, पुरखों की जागीर।।
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सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंथोड़े दिन की ही बची, पुरखों की जागीर।।
जवाब देंहटाएं-लेकिन इस जागीर को सुरक्षित रखना हमारा फ़र्ज़ है-अच्छा चेताया आपने .