बाहर खाने में
नहीं, आता कोई स्वाद।
होटल में जाकर
सदा, होता धन बरबाद।।
फूली-फूली
रोटियाँ, सजनी रही बनाय।
बाट जोहती है
सदा, कब साजन घर आय।।
फूली रोटी देखकर,
होते सब अनुरक्त।
मगर काटते तो
नहीं, हँसी-खुशी से वक्त।।
घर के खाने में
भरा, घरवाली का प्यार।
सजनी खाने के
लिए, करती है मनुहार।।
बना रहे खुशहाल
ही, जीवन का परिवेश।
रोटी-रोजी के लिए,
जाते लोग विदेश।।
दौलत के बाजार
में, बिकते रोज रसूख।
रोटी की कम भूख
है, धन की ज्यादा भूख।।
रोटी सबका लक्ष्य
है, रोटी है तकदीर।
जग में रोटी के
बिना, चलता नहीं शरीर।।
खाकर माल हराम
का, करना मत आखेट।
श्रम से अर्जित
रोटियाँ, भरती सबका पेट।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

बहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-05-2018) को "रोटी है तकदीर" (चर्चा अंक-2972) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सच धन की भूख कुछ ही बढ़ी है आजकल और बाहर का खाने का रिवाज, जो निश्चित ही हानिकारक है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना