मतलब
में करना नहीं, लोगों की मनुहार।।
अपने
लेखन में करो, अपने आप सुधार।
रँगे
पश्चिमी रंग में, जब से अपने गीत।
तब से अपने देश का, बिगड़ गया संगीत।।
वचनबद्ध
रहना सदा, कहलाना प्रणवीर।
वचन
निभाने के लिए, हमको मिला शरीर।।
कहना
सच्ची बात को, मत होना भयभीत।
जो
दे सही सुझाव को, वही कहाता मीत।।
कहलाना
मत बेवफा, कुटिल न चलना चाल।
कभी
वफा की राह में, नहीं बिछाना जाल।।
|
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मंगलवार, 28 नवंबर 2017
दोहे "कहलाना प्रणवीर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
मतलब में करना नहीं, लोगों की मनुहार।।
जवाब देंहटाएंअपने लेखन में करो, अपने आप सुधार।
सादर नमन । आपके दोहों से लगातार सीखने को मिलता है ।
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसादर!