मूरख दिवस मना रहे, लोग शान से आज।
गुणवन्तों के दिवस का, कोई नहीं रिवाज।।
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लोगों को रुचने लगा, मूरखपन का खेल।
मूरख की संसार में, खूब फैलती बेल।।
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जो सुपात्र हैं जगत में, वो हैं आज उदास।
मगर निठल्लों के भरा, तन-मन में उल्लास।।
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बेवकूफ खुश हो रहे, देख निराले ढंग।
उनके जीवन में भरे, अब तो सातों रंग।।
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ज्ञानी भी मूरख बनें, कैसी है ये रीत।
जो गत-विगत बना लिए, गाते वो ही गीत।।
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होशियार जो हैं यहाँ, परस रहे वो ज्ञान।
लेकिन जग की चाल से, बने हुए अनजान।।
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एक साल में एक दिन, बेवकूफ का होय।
बेवकूफ तो शेष दिन, शीश पकड़ कर रोय।।
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सोमवार, 1 अप्रैल 2019
दोहे "ज्ञानी भी मूरख बनें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मूरख दिवस पे करार व्यंग है ... मूर्खों को समझ आने से रही ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमूर्खों की भी जय
वाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं