नवसम्वत्सर आ गया, गया पुराना साल।
नूतन आशाएँ जगीं, सुधरेंगे अब हाल।।
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नौ दिन के ही लिए क्यों, करते पूजा-जाप।
प्रतिदिन पूजा-पाठ से, कटते संकट-ताप।।
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माँ जगदम्बा का करो, सच्चे मन से ध्यान।
माँ देवी का रूप है, माता बहुत महान।।
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माता से अस्तित्व है, सन्तानों का आज।
माँ की पूजा से बनें, सबके बिगड़े काज।।
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धरती में-आकाश में, देवताओं का वास।
कभी न करना चाहिए, देवों का उपहास।।
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कुदरत की अठखेलियाँ, करती बहुत उदास।
आशा है नववर्ष फिर, लायेगा उल्लास।।
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ओ भारत के वासियों, मन को करो उदार।
केवल हिन्दू वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।।
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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
दोहे "नवसम्वत्सर आ गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत शानदार लेख है।
जवाब देंहटाएंबैंकिंग से जुडी जानकारियों के लिये विजिट करें -- www.earnmetro.com--
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (6-04-2019) को " नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं " (चर्चा अंक-3297) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
बहुत सुन्दर दोहे
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