आज
हमारे गाँव में, बारिश का है जोर।।
अभी
भयंकर धूप थी, छाये अब घनश्याम।
भीषण
गरमी से मिला, लोगों को आराम।।
नभ में
बादल देखकर, दिनकर है भयभीत।
खुशियाँ
मेघ मना रहा, देख स्वयं की जीत।।
आसमान
से गिर रहीं, मोटी जल की बूँद।
बया
नीड़ में सो रहा, अपनी आँखें मूँद।।
भारी
बारिश से हुए, आहत पेड़-पहाड़।
कलकल-छलछल
कर रहे, नदी-गधेरे-गाड़।।
सड़कों
में पानी भरा, आवाजाही बन्द।
सोचो
लोग पहाड़ के, कैसे लें आनन्द।।
बरखा
से सहमा हुआ, प्रान्त उत्तराखण्ड।
जनमानस
को शैल के, बारिश देती दण्ड।।
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019
दोहे "दिनकर है भयभीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर दोहे सरस सृजन आदरणीय ।
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