जब तक तन में प्राण रहेगा, हार नहीं माँनूगा।
कर्तव्यों के
बदले में, अधिकार नहीं
माँगूगा।।
टिक-टिक करती
घड़ी, सूर्य-चन्दा चलते
रहते हैं,
अपने मन की
कथा-व्यथा, वो कभी नहीं कहते
हैं,
बिना वजह मैं कभी
किसी से, रार नहीं
ठाँनूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं
माँगूगा।।
जीवन के भवसागर
से, नौका को पार
लगाना है,
श्रम करके जीविका
कमाना, सीधा पथ अपनाना
है,
भोले-भाले, असहायों पर, शस्त्र नहीं
ताँनूगा।
कर्तव्यों के
बदले में, अधिकार नहीं
माँगूगा।।
जन्मभूमि के लिए
जियूँगा, इसके लिए मरूँगा,
आन-बान के लिए
देश की, अर्पण प्राण
करूँगा,
मर्यादा की सीमा को, मैं कभी नहीं
लाँघूगा।
कर्तव्यों के
बदले में, अधिकार नहीं
माँगूगा।।
|
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बुधवार, 12 नवंबर 2014
"गीत-सीमा को कभी नहीं लाँघूगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ठीक बात ! लोग कर्त्तव्यों से मुहँ मोड़ कर सर्फ और सर्फ अधिकारों हेतु लड़ाई कर रहे हैं और यही विकास की बुराई है !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-11-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1796 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
सुन्दर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंभोले-भाले, असहायों पर, शस्त्र नहीं ताँनूगा।
जवाब देंहटाएंकर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।..
वाह कितनी ओजस्वी ... लाजवाब भावपूर्ण रचना है ... अटल जी की कविता "हार नहीं मानूंगा" की याद आ गयी ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंजन्मभूमि के लिए जियूँगा, इसके लिए मरूँगा,
जवाब देंहटाएंआन-बान के लिए देश की, अर्पण प्राण करूँगा,
मर्यादा की सीमा को, मैं कभी नहीं लाँघूगा।
कर्तव्यों के बदले में, अधिकार नहीं माँगूगा।।
...बहुत सुन्दर देशप्रेम जगाती सुन्दर प्रस्तुति ..