हार में है छिपा जीत का आचरण।
सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
बात कहने से पहले विचारो जरा
मैल दर्पण का अपने उतारो जरा
तन सँवारो जरा, मन निखारो जरा
आइने में स्वयं को निहारो जरा
दर्प का सब हटा दीजिए आवरण।
सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
मत समझना सरल, ज़िन्दग़ी की डगर
अज़नबी लोग हैं, अज़नबी है नगर
ताल में जोहते बाट मोटे मगर
मीत ही मीत के पर रहा है कतर
सावधानी से आगे बढ़ाना चरण।
सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
मनके मनकों से होती है माला बड़ी
तोड़ना मत कभी मोतियों की लड़ी
रोज़ आती नहीं है मिलन की घड़ी
तोड़ने में लगी आज दुनिया कड़ी
रिश्ते-नातों का मुश्किल है पोषण-भरण।
सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
वक्त की मार से तार टूटे नहीं
भीड़ में मीत का हाथ छूटे नहीं
खीर का अब भरा पात्र फूटे नहीं
लाज लम्पट यहाँ कोई लूटे नहीं
प्रीत के गीत से कीजिए जागरण
सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
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मंगलवार, 4 नवंबर 2014
"गीत-सीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण और सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसशक्त सन्देश देता सुन्दर बिम्ब प्रधान गीत :
जवाब देंहटाएंमनके मनकों से होती है माला बड़ी
तोड़ना मत कभी मोतियों की लड़ी
कल 06/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
Sikhiye pyar se pyar ka vyakaran.... Bahut hi umda gahre bhaaw saarthak prastuti !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंnice lines
जवाब देंहटाएंहार में है छिपा जीत का आचरण।
जवाब देंहटाएंसीखिए प्यार से, प्यार का व्याकरण।।
सुन्दर शब्द रचना.....
http://savanxxx.blogspot.in