नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं।
मतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।।
जनता ने चुना नहीं जिनको, वो चोर द्वार से आ पहुँचे,
माटी के बुत हैं असरदार, सरदार बनाये जाते हैं।
ढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है
लोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये जाते हैं।
आगे से अरबी घोड़ी है, पीछे से लगती गैया है,
परदेशी दुधारू गैया के, नखरे भी उठाये जाते हैं।।
संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में,
तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते हैं।
मम्मी जी को तो अपना ही, दामाद बहुत ही भाता है,
निर्धन बेटों की भूमि पर, वो महल बनाये जाते हैं।
गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।
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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017
कव्वाली "सिंहासन पर उल्लू भी बिठाये जाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह ! बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंमम्मी जी को तो अपना ही दामाद बहुत ही भाता है
जवाब देंहटाएंनिर्धन बेटो की भूमि पर वह महल बनाए जाते हैं...
लाजवाब....
बहुत ही सुन्दर....
''गांधी बाबा के खादर में, कब्जा है आज लुटेरों का,
जवाब देंहटाएंखद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं।'' क्या बात है !!!!!! व्यंग की अद्भुत छटा----- लाजवाब --------