वाणी से खिलता है उपवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
शब्दों को मन में उपजाओ
फिर इनसे कुछ वाक्य बनो
सन्देशों से फलता गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी मादक-उन्मादी
बन्दी में होती आजादी
सुख बरसाता रहता सावन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
आता नहीं बुढ़ापा जिसको
तुकबन्दी कहते हैं उसको
छाया रहता जिस पर यौवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
दुर्जन के प्रति भरा निरादर
महामान्य का करती आदर
तुकबन्दी से होता वन्दन
तुकबन्दी मनुहार-प्यार है
यह महकता हुआ हार है
तुकबन्दी होती चन्दन-वन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
शायर की यह गीत–ग़ज़ल है
सरिताओं की यह कल-कल है
योगी-सन्यासी का आसन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी बिन जग है सूना
यही उदाहरण, यही नमूना
तुकबन्दी में है अपनापन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी बिन काव्य अधूरा
मज़ा नहीं मिलता है पूरा
तुकबन्दी से होता गायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
अगर शान से जीना चाहो
तुकबन्दी को ही अपनाओ
खोलो तो मुख का वातायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
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शुक्रवार, 7 जुलाई 2017
"तुकबन्दी मादक-उन्मादी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजीवन की एक अलग परिभाषा. बहुत खूब. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति जीवन की ,सुन्दर शब्द रचना आभार "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंसच है स्वर-व्यञ्जन के बिना शब्द नहीं बनते हैं, जिंदगी भी इसी की तरह है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया
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