जब पड़ती चौमास
में, रिमझिम सुखद फुहार।।
तब आते बरसात में,
तीज और त्यौहार।।
--
हरी-भरी धरती हुई,
उफन रहे हैं ताल।
उछल-कूद के साथ
में, दादुर करें धमाल।।
--
बरखा का जलपान कर,
धान रहे लहराय।
चरागाह में चर
रहे, घोड़े-खच्चर-गाय।।
--
कुदरत के उपहार
ये, लगते बहुत हसीन।
मखमल जैसी घास के,
बिछे हुए कालीन।।
--
घेवर लेकर आ गया,
तीजो का त्यौहार।
घर-घर में झूले
पड़े, झूल रहे नर-नार।।
--
हाथों में मेंहदी
रचा, पहन गले में हार।
तीजों पर तो
नारियाँ, करती हैं सिंगार।।
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उपवन कानन-बाग
में, बरस रहा है नूर।
कंटक पेड़ खजूर पर,
फल लटके भरपूर।।
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सोमवार, 24 जुलाई 2017
दोहे "तीजो का त्यौहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
आपको सपरिवार शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और समसामयिक.
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंपरंपरा और संस्कृति की झलक दिखलाते दोहे.. . बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतीज पे सुन्दर दोहे ... बधाई पर्व की ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंसावन और तीज त्यौहार पर मनभावन रचना..।
बहुत अच्छी सावनी रंगत लिए रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे |
जवाब देंहटाएं