जो प्यासी धरती की, अपने जल से प्यास बुझाते हैं
आसमान में जो उगते हैं, वो बादल कहलाते हैं
जो मुद्दत से तरस से थे, जल के बिना अधूरे थे,
उन सूखे नदिया-नालों को, निर्मल नीर पिलाते हैं
चरैवेति का पाठ पढ़ाने, जो धरती पर आकर के,
पतित-पावनी गंगा को, जो सागर तक ले जाते हैं
जोर-शोर के साथ गरजकर, अपना नाद सुनाते हैं,
बंजर वसुन्धरा में जो, हरियाली लेकर आते हैं
जिन्हें देखकर पागल-मधुकर, गुंजन करने को आते,
वीराने उपवन में भी, जो सुन्दर सुमन खिलाते हैं
आहट से बादल की, जन-जीवन में सुख भर जाता है,
मुरझाये चेहरे भी जिनको, देख-देख मुस्काते हैं
पौध धान की तो बारिश के, इन्तजार में रहती है,
श्रमिक-किसानों के जीवन में, रोज़गार को लाते हैं
जल ही जिनका जीवन है, वो नभ को तकते रहते हैं,
दादुर-मोर-पपीहा के, जीवन में खुशियाँ लाते हैं
बादल से ही इन्द्रदेव का, नाम हमेशा जुड़ा हुआ,
इन्द्रधनुष का चौमासे में, “रूप” हमें दिखलाते हैं
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मंगलवार, 4 जुलाई 2017
ग़ज़ल "जीवन में खुशियाँ लाते हैं"
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वाह ,
जवाब देंहटाएंपाठ्य पुस्तक योग्य रचना
हार्दिक मंगलकामनाएं आपकी स्वर्णिम लेखनी को !
बादल की सुंदर गाथा..
जवाब देंहटाएंबादलों का यशोगान
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंBadal ka sundar warnan...
जवाब देंहटाएंBadal ka sundar warnan...
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग