घिर गये बादल गगन में, चल पड़ी पुरवा पवन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
गाँववासी रोपने को धान,
खेतों में चले हैं,
देख वर्षा को नयन में,
अन्न के सपने पले हैं,
पड़ रहीं रिमझिम फुहारें, मिट गयी सारी तपन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
आज फिर बालक खुशी से,
नाव आँगन में चलाते,
भीगना लगता सुहाना,
तेज बारिश में नहाते,
आज तो नन्हें सुमन भी, कर रहे हैं आचमन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
देखकर काली घटा,
सूरज गया छुट्टी मनाने,
बया ने भी बुन लिए थे,
कुछ निरापद आशियाने,
इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
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रविवार, 2 जुलाई 2017
गीत "मिट गयी सारी तपन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पड़ रहीं रिमझिम फुहारें, मिट गयी सारी तपन।
जवाब देंहटाएंपा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
वाह प्रक्रति का सुंदर चित्रण
सादर
वाह वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपका जवाब नहीं .
जवाब देंहटाएंवाह! प्रकृति की सुंदर चित्रमय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएं